
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक गृहिणी की सड़क दुर्घटना में हुई मौत के एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि घरेलू महिलाएं भी अपने कार्यों से अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं। कोर्ट का यह भी कहना था कि मुआवजे के लिए गृहिणियों की काल्पनिक आय निर्धारित करना उनके योगदान को सम्मान देने के समान है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उन लोगों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है, जो गृहिणियों के काम को महत्व नहीं देते और उनसे पूछते हैं – “तुम दिनभर घर में बैठकर करती क्या हो?”
गृहिणियों के श्रम को मान्यता मिले
70-80 के दशक की प्रसिद्ध समाजशास्त्री और नारीवादी लेखिका डॉ. प्रमिला कपूर ने अपनी शोध पुस्तक ‘भारत में विवाह एवं कामकाजी महिलाएं’ (1976) में लिखा है:
“समाज की शुरुआत से लेकर अब तक हमारी सामाजिक संस्थाओं और नियमों में कई लोकतांत्रिक परिवर्तन हुए हैं। जैसे कि विवाह संस्था आदि काल से मौजूद है, लेकिन अब कोर्ट के आदेशानुसार किसी भी प्रकार के विवाह को पंजीकृत कराना अनिवार्य हो गया है। इसका अर्थ यह है कि अब विवाह एक अनुबंध बन गया है। इसी तरह अब घरेलू महिलाओं के श्रम को भी सामाजिक मान्यता देने की चर्चा शुरू होनी चाहिए।”
गृहिणियों के काम की अनदेखी
आज भी अधिकांश लोग गृहिणियों के काम की कद्र नहीं करते। ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ जैसी सोच आम है। एक महिला पूरे परिवार को खाना खिलाती है, घर संभालती है, लेकिन फिर भी पूछा जाता है – “तुम दिनभर करती क्या हो?” या “तुम्हें रोटी बनाने के सिवा आता ही क्या है?”
ऐसे लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एक चेतावनी और सीख है। अब यह स्वीकार करना होगा कि किसी महिला के काम को कमतर आंकना नासमझी नहीं, बल्कि बेवकूफी है।
क्या है पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट में एक केस की सुनवाई के दौरान, तीन सदस्यीय पीठ के निर्णय में न्यायमूर्ति एन. वी. रमण ने एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा:
“महिलाएं बिना किसी पारिश्रमिक के घर के सदस्यों को सेवा देने में पुरुषों की तुलना में अधिक समय व्यतीत करती हैं। घर संभालने का काम अधिकतर महिलाएं ही करती हैं – वे भोजन बनाती हैं, किराना और अन्य ज़रूरी वस्तुएं खरीदती हैं, घर की सफाई, सजावट, रख-रखाव, मरम्मत करती हैं, बच्चों और बुजुर्गों की विशेष देखभाल करती हैं, बजट का प्रबंधन करती हैं और अन्य कई कार्य करती हैं। इसलिए उनके लिए एक कल्पित आय तय करना आवश्यक है, जिससे उनके योगदान को सम्मान मिल सके।”
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी मान्यता से यह संदेश जाएगा कि देश की न्याय व्यवस्था गृहिणियों के श्रम को महत्त्व देती है। यह स्पष्ट है कि गृहिणियों का कार्य भी देश की आर्थिक प्रगति में उतना ही सहायक है, जितना किसी पुरुष का वेतनभोगी काम।
प्रसिद्ध हस्तियों की सहमति
अभिनेता कमल हासन और सांसद शशि थरूर ने कोर्ट की टिप्पणी का समर्थन करते हुए कहा है कि घरेलू महिलाओं को राज्य सरकार की ओर से मासिक वेतन मिलना चाहिए।
इस टिप्पणी के बाद चर्चा तेज हो गई है कि गृहिणियों के श्रम का उचित मूल्यांकन कैसे हो। यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) योजना के अंतर्गत महिलाओं के श्रम को आर्थिक मान्यता देने की बात भी उठी है। यह एक सरकारी योजना है जिसके अंतर्गत सभी नागरिकों, विशेषतः बुजुर्गों, को आर्थिक सहायता दी जाती है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गृहिणी के काम की गणना
जस्टिस रमण ने 2011 की जनगणना और नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस की ‘टाइम यूज़ इन इंडिया 2019’ रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया:
-
देश में लगभग 16 करोड़ महिलाएं घरेलू काम को ही अपना मुख्य व्यवसाय मानती हैं।
-
वहीं केवल 57 लाख पुरुष ही घरेलू काम में व्यस्त हैं।
-
महिलाएं औसतन 299 मिनट (लगभग 5 घंटे) प्रतिदिन घरेलू काम करती हैं।
-
पुरुषों द्वारा औसतन 97 मिनट ही घरेलू कार्य में व्यतीत किया जाता है

16 वर्षों से लेखन एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेखन का अनुभव; लाडली मीडिया अवॉर्ड, NFI फेलोशिप, REACH मीडिया फेलोशिप सहित कई अन्य सम्मान प्राप्त; अरिहंत, रत्ना सागर, पुस्तक महल आदि कई महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों सहित आठ वर्षों तक प्रभात खबर अखबार में बतौर सीनियर कॉपी राइटर कार्य अनुभव प्राप्त करने के बाद वर्तमान में फ्रीलांसर कार्यरत.