Thursday, November 14
Home>>Lifestyle>>प्रेम साथ चलने का नाम है
Lifestyle

प्रेम साथ चलने का नाम है

तुम्हारे ब्रेक-अप का कारण तुम्हारी प्रेमिका की नौकरी नहीं है। ब्रेक-अप का कारण यह था कि तुम दोनों की राहें बदल गई थी। तुम दोनों ने साथ चलना बंद कर दिया था। फिर मैंने उसे विस्तार से उसे प्रेम के उस समीकरण के बारे में बताया, जिसके बिना प्रेम संभव ही नहीं है। आगे पढ़े……..

प्रेम का साथ होना सकून देता है…

बातों-बातों में वह अपनी प्रेम कहानी सुनाने लगा। उसने कहा-मैं जिससे प्यार करता था, वह भी मुझसे प्यार करती थी। हम दोनों को लगता था कि एक-दूसरे के बिना हम जिंदा तो रह लेंगे, पर खुलकर जिंदगी नहीं जी पाएंगे। हम दोनों साथ पढ़ते, साथ पढ़ते, साथ खाते, लाइब्रेरी भी साथ जाते….जीचन का एक-एक क्षण साथ गुजारने की ख़्वाहिश को हम जी रहे थे। सब-कुछ भरा-पूरा सा लगता, कहीं कोई कमी नहीं दिखाई देती। हम हमेशा यही मनाते कि हमारी जिंदगी यो ही बनी रहे और हमारा साथ कभी नहीं छूटे। चार साल की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के जब प्लेसमेंट की बारी आई, तो हमने पूरी ताकत लगा दी कि हम एक ही शहर में रहें और ऐसा हुआ भी। फिर साल भर हम साथ रहे और हमें एक-दूसरे के साथ नीरस लगने लगा। नौकरी करने  बाद वह बिल्कुल बदल गई थी। धीरे-धीरे हमारी एक-दूसरे के प्रति अरूचि होने लगी और अंतत: हमारा ब्रेक-अप हो गया। आज भी उन सुनहरे दिनों की याद आती है तो लगता है कि उसने अगर नौकरी न की होती, तो हम साथ होते………

उसकी बात बीच में काटते हुए मैं टोका और कहा कि तुम ग़लत सोच रहे हो, तुम्हारे ब्रेक-अप का कारण तुम्हारी प्रेमिका की नौकरी नहीं है। ब्रेक-अप का कारण यह था कि तुम दोनों की राहें बदल गई थी। तुम दोनों ने साथ चलना बंद कर दिया था। फिर मैंने उसे विस्तार से उसे प्रेम के उस समीकरण के बारे में बताया, जिसके बिना प्रेम संभव ही नहीं है।

प्रेम का समीकरण

प्रेम का समीकरण

प्रेम का समीकरण बहुत ही सरल है, परंतु यह सरलता अत्यंत ही विरल है। प्रेम सहजता, सह-अस्तित्व और अहं-शून्यता के साथ एक और तत्व की मांग करता है और वह तत्व है, साथ मिलकर पूरी संमग्रता के साथ अपना सर्वस्य किसी एक काम में लगा देना। प्रेम समर्पण की मांग करता है, परंतु यह समर्पण एक-दूसरे से अधिक उस काम के प्रति होता है, जिस काम में दोनों लगे हैं।

मशहूर मनोवैज्ञानिक एरिक फ्रांम ने बहुत सरल शब्दों में प्रेम को सृजनशीलता की अभिव्यक्ति बताया है। सृजन की किसी प्रक्रिया के बिना प्रेम की कल्पना तक नहीं की जा सकती। किसी के प्रेम में अगर कोई सृजन होता नहीं दिख रहा है, तो समझ लीजिए वहां प्रेम नहीं है, वे दोनों केवल एक-दूसरे के अंह को तुष्ट कर रहे हैं। 

अतएव  साथ मिलकर पूरी निष्ठा के साथ किया गया सृजन-कर्म ही प्रेम की पहली एंव अनिवार्य शर्त है। उपरोक्त प्रसंग में प्रगाढ़ प्रेम का कारण साथ मिलकर पूरी निष्ठा के साथ पढ़ना था और अलग-अलग नौकरी होने से दोनों के बीच वह मौका खत्म हो गया, जिसमें दोनों साथ मिलकर एक पूरी निष्ठा और रुचि के साथ कोई एक काम कर पाते। उनकी वरीयताएं बदल जाती हैं और साथ रहते हुए भी वे किसी एक रास्ते पर साथ चलना बंद कर देते है।

प्रेम का अहं-मुक्त होना जरूरी है।

प्रेम समर्पण के बिना सभव नही है

भारतीय परिवार में प्रेम-विवाह का प्रचलन बहुत कम है, परंतु बहुधा पति-पत्नी एक-दूसरे से प्रेम करते लगते हैं। इसका प्रमुख कारण परिवार को चलाने में दोनों प्राणियों का एक निष्ठ होकर पूरी तन्मयता के साथ लगा रहना होता है। एकनिष्ठ होकर किसी काम को करने का सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण है यौन-संबंध। एक स्वस्थ एवं प्रेमपूर्ण यौन-संबंध की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमेम दोनों प्राणी दुनिया को भूलकर काल के उस बिंदू पर पूरे समर्पण और निष्ठा के साथ एक कर्म में अपना सर्वस्य दे देते हैं। यह भी सृजन की एक प्रक्रिया है,सृजन की सबसे पवित्र प्रक्रिया, जिसमें नवजीवन का सृजन होता है। अपना सर्वस्य लगाकर श्रम करने  की प्रक्रिया जब अपना सृजन-कर्म पूरा करती है, तो एक क्षण भर के लिए व्यक्ति अपने अहं से पूरी तरह मुक्त हो जाता है। अहं से पूर्ण मुक्ति सुख की चरम अनुभूति है। यही कारण है कि यौन-संबंध को ही अक्सर प्रेम मान लिया जाता है, जबकि मामला बस एकनिष्ठ साथ मिलकर श्रम करने का है।

हर एकनिष्ठ, सामूहिक और ईमानदार श्रम से जब कोई निर्माण-कार्य होता है, वह मनुष्य को अहं-शून्यता का सुख देता है। यहीं प्रेम का प्रकटीकरण है।  यौन-संबंध तो एक उदाहरण है, प्रेम तो वहां फलित होता है, जहां एक टीम साथ मिलकर पूरी तन्मयता के साथ कोई खेल खेलती है और जीतने का लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ती है और जीतती है। एकनिष्ठ होकर साथ-साथ सृजन के लिए श्रम करना ही वह प्रक्रिया है, जिससे परिवारों में प्रेम फलित होता है और राष्ट्र में अगर यह परिघटना उदात्त रूप ले तो पूरा का पूरा राष्ट्र प्रेम के सूत्र में बंध जाएगा।

(नोट: यह लेख अहा जिंदगी पत्रिका के जिंदगी का प्रेमराग कालम में  प्रकाशित हो चुकी है, आभार अहा जिदंगी।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »
error: Content is protected !!