पिछले कुछ सालों में पुस्तक मेले में बाल साहित्य में बच्चों और वयस्कों की दिलचस्पी काफी दिखती है, लेकिन हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों का लेखन यहां नहीं दिखता. सच तो यह है कि हिंदी में साहित्यकारों ने बच्चों को ध्यान में रखकर….आगे पढ़े…….
हिंदी के चर्चित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को मिले पेन/नाबाकोब पुरस्कार की चर्चा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है.उनके उपन्यासकार, कवि, कथकार रूप की बातें फिर से मीडिया में हो रही हैं. नौकर की कमीज और दीवार में एक खिड़की रहती थी उपन्यास के अलावा लगभग जयहिंद, सब कुछ बचा रहेगा, जैसी कविता संग्रह से उन्हें साहित्य जगत में काफी प्रतिष्ठा मिली. वे पहले भारतीय एशियाई मूल के लेखक हैं, जिन्हें पचास हजार डालर का यह सम्मान मिला है. विनोद कुमार शुक्ल की एक विशिष्ट भाषा और लेखन शैली है. यथार्थ चित्रण में भी एक रागात्मकता यहां दिखती है, हालांकि कई बार यह बोझिल भी हो जाती है.पर उनके प्रशंसकों का एक अलग वर्ग रहा है.
बहरहाल, पिछले दिनों दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेल में विनोद कुमार शुक्ल का साहित्य नये कलेवर में पाठकों के लिए उपस्थित रहा. साथ ही, मेले में इकतारा ट्रस्ट से छपी बच्चों के लिए लिखी उनकी किताबें- एक चुप्पी जगह, गोदाम, एक कहानी, घोड़ा और अन्य कहानियां तथा बना बनाया देखा आकाश: बनते कहां दिखा आकाश(कविता संग्रह)- भी दिखी. बाल साहित्यकार के रूप में उनकी चर्चा छूट जाती है, जबकि हाल के वर्षों में 86 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल बच्चों के लिए साहित्य रचने पर जोर दे रहे है.
पुरस्कार के बाद एक बातचीत के दौरान उन्होंन मुझसे कहा कि- अभी मेरी सोच में बच्चों के लिए लिखने का अधिक रहता है. मैं इस उम्र में छोटा लिखता हूं और कम लिखता हूं क्योंकि ज्यादा देत तक किसी एक चीज पर काम कायम रखना बहुत कठिन है. लेखने में भी. ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकता, बैठ भी नहीं सकता. मेरी शारीरिक और मानसिक स्थिति अब वैसे नहीं है. लेकिन तब भी मैं बच्चों के लिए लिख रहा हूं.
वे जोर देकर कहते है कि बच्चों पर लिखते हुए वे अपने बचपन में लौट रहे है. बातचीत के क्रम में वो कहते है कि – मेरी अम्मा के घर में हम बच्चों पर अच्छा प्रभाव पड़ा था, खासकर अपने साथ वह बंगाल के साहित्य का संस्कार भी लेकर आयी थी.
पिछले कुछ सालों में पुस्तक मेले में बाल साहित्य में बच्चों और वयस्को की दिलचस्पी काफी दिखती रही है, लेकिन हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकारों का लेखन यहां नहीं दिखता. सच तो यह है कि हिंदी के साहित्यकारों ने बच्चों को ध्यान में रखकर बहुत कम लिखा है. प्रकाशकों ने भी इस वर्ग के पाठकों में रुचि नहीं दिखाई. इसके क्या कारण है? जहां हिंदी के प्रतिष्ठित प्रकाशक बच्चों के लिए किताब छापने से बचते रहते हैं, वही हाल में एकलव्य, इकतारा, कथा, प्रथम जैसी संस्थानों ने हिदी में रचनात्मक और सुरुचिपूर्ण किताबें छापता रहा है, पर बदलते समय के अनुसार यहां विषय-वैविध्य और गुणवत्ता का अभाव है. ऐसे में विनोद कुमार शुक्ल का बाल साहित्यकारों रूप अलग से रेखांकित किये जाने की मांग करता है।
नोट: यह लेख अरविंद दास ने प्रभात खबर के लिए लिखा है. आभार प्रभात खबर और अरविंद दास