‘केसरी चैप्टर 2’: जब सी. शंकरन नायर ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी

जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और दिल दहला देने वाली घटना है। इस भीषण नरसंहार का जिम्मेदार जनरल डायर इतिहास में एक क्रूर खलनायक के रूप में दर्ज है।
भारतीय सिनेमा ने इस त्रासदी को विभिन्न दृष्टिकोणों से दर्शाने का प्रयास किया है। रंग दे बसंती, सरदार उधम, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह और फिल्लौरी जैसी फिल्मों ने इस घटना को अपने-अपने तरीके से प्रस्तुत किया है। इनमें से अधिकांश प्रयासों ने दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी है। इस कड़ी में ‘केसरी चैप्टर 2’ भी अब शामिल है।
फिल्म निर्देशकों का यह दावा है कि वह इतिहास से एक अनकही कहानी दर्शकों के सामने लाने का काम किया है। मेरा सवाल है अगर इतिहास ने सी. शंकरन नायर को भूला दिया तो उनके सम्मान में डाकटिकट क्यों जारी किया गया।

इतिहास में सी. शंकरन नायर दर्ज है आधुनिक भारत के इतिहास का एक गंभीर और संवेदनशील इतिहासकार सी. शंकरन नायर को जाने बिना आगे बढ़ ही नहीं सकता है। ‘केसरी चैप्टर 2’ में सी. शंकरन नायर को अधिनायक के रूप में दिखाने की कोशिश है, जिसमें फिल्म निमार्ता पूरी तरह से सफल हुए है।
सी. शंकरन नायर कौन थे?
सी. शंकरन नायर आजादी से पहले भारत के एक प्रतिष्ठित और निर्भीक वकील थे। सी. शंकरन नायर राजनीति में उदारवादी और नरमपंथी थे। सर शंकरन की मौजूदगी उतनी ही प्रभावशाली थी, जितनी उनकी योग्यता। अपने जीवनकाल में वह जिस भी क्षेत्र में गए, वहां उन्होंने ऊंचाईयों को छुआ। वह एक देशप्रेमी थे जो अपने लोगों की भलाई के लिए कार्य करता था। सामाजिक सुधारों में वह अपने समय से कहीं आगे थे और उनका योगदान काफ़ी अहम था।

शंकरन नायर को मद्रास प्रांत का सरकारी वकील 1899 में बनाया गया एवं महाधिवक्ता 1907 में तथा मद्रास उच्च न्यायालय का न्यायाधीश 1908 में नियुक्त किया गया। 1915 तक वह इस पद पर रहे। इसी बीच साल 1902 में वॉयसराय लॉर्ड कर्जन ने उन्हें सालिग यूनिवर्सिटी कमीशन का सचिव बनाया।
अपने सबसे प्रसिद्ध फ़ैसले में उन्होंने हिंदू धर्म में धर्मातरण को उचित ठहराया तथा फ़ैसला दिया कि ऐसे धर्मांतरित लोग जाति बहिष्कृत नहीं हैं। कुछ सालों तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि रहे और इसके अमरावती अधिवेशन 1897 की अध्यक्षता की, उन्होंने ‘द मद्रास रिव्यू’ एवं ‘द मद्रास लॉ’ जर्नल की स्थापना और संपादन किया।
वह कट्टरपंथी राष्ट्रवादी नहीं थे जो दूसरों में क्या अच्छा है इसे देखकर अंधे हो जाए, इसलिए उन्होंने जहां एक तरफ ब्रिटिश संसदीय संस्थाएं, देशप्रेम और उद्योगों की सराहना की, वही दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश राज के दुष्प्रभावों को उजागर भी किया।
जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरोध में वायसराय की कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया और खुलकर इस बर्बरता के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने अपनी आत्मकथा में इस घटना की कठोर आलोचना की और जनरल डायर को सीधे तौर पर दोषी ठहराया। अपनी पुस्तक ‘गांधी ऐंड एनार्की’ (1922) में सी. शंकरन नायर नें गांधी के असहयोग आंदोलन तथा फ़ौजी क़ानून के तहत ब्रिटिश कार्रवाई की कड़ी आलोचना की।
हंटर आयोग द्वारा डायर के कार्यों को “गंभीर गलती” करार दिए जाने के बाद, नायर ने लिखा, “मेरा दावा था कि माइकल ओ’डायर ने इस नृशंस कृत्य को अधिकृत किया था, लेकिन उसकी संलिप्तता के बावजूद उसे दंडित नहीं किया गया।” उनका मानना था कि डायर के साथ-साथ ओ’डायर भी बराबर का दोषी था।
‘केसरी चैप्टर 2 कि कहानी
सी. शंकरन नायर के पोते रघु पलात और पुष्पा पलात द्वारा लिखित पुस्तक ‘The Case That Shook the Empire‘ में जालियाँवाला बाग हत्याकांड से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं विस्तार से दर्ज हैं। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम को निर्देशक करण सिंह त्यागी और निर्माता अमृतपाल बिंद्रा ने फिल्म की कथा में पिरोया है। प्रोडक्शन डिजाइनर रीता घोष ने आज़ादी से पहले के भारत को पर्दे पर प्रामाणिक रूप में प्रस्तुत किया है।

देबोजीत रे की सिनेमैटोग्राफी और करण सिंह त्यागी का निर्देशन दर्शकों को 2 घंटे 15 मिनट तक बांधे रखता है। संगीतकार शाश्वत सचदेव के गीत ‘ओ शेरा’ और अजीम दयानी का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म में रोमांच का स्तर और भी बढ़ाते हैं।
फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक ब्रिटिश समर्थक वकील सी. शंकरन नायर धीरे-धीरे राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर मुड़ते हैं। इस बदलाव को फिल्म उतनी भावनात्मक गहराई नहीं दे पाती, जितनी अपेक्षित थी। देशभक्ति से लबरेज होने के बावजूद फिल्म में इमोशनल डेप्थ बनाने में कामयाब नहीं हो पाती है।
ऐतिहासिक रूप से, जालियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद कोई मुकदमा अदालत में नहीं गया, लेकिन इस फिल्म में कोर्टरूम ड्रामा के जरिए जनरल डायर के अमानवीय कृत्य को सामने लाने की कोशिश की गई है। उस समय जिस सच्चाई को छुपाया गया था, उसे केसरी चैप्टर 2 फिल्म ने उघाड़ने का प्रयास किया है।
यह फिल्म दर्शाती है कि जालियाँवाला बाग में जुटे लोग किसी साजिश के तहत नहीं आए थे, बल्कि वे एक शांतिपूर्ण सभा का हिस्सा थे। आम भारतीयों में उस हत्याकांड के प्रति जो आक्रोश था, उसे फिल्म प्रभावी ढंग से दर्शाती है।
क्यों देखें,’केसरी चैप्टर 2
अक्षय कुमार ने सी. शंकरन नायर की भूमिका को दमदार तरीके से निभाया है। उनका अभिनय साहसी और प्रभावशाली है। आर. माधवन भी उतने ही सशक्त नज़र आए हैं, उन्होंने गहन और प्रभावशाली अभिनय किया है। अनन्या पांडे ने एक युवा वकील दिलरीत गिल की भूमिका निभाई है, जो शुरुआत में हिचकिचाती है लेकिन धीरे-धीरे आत्मविश्वास से अदालत में जिरह करती है।
हर किरदार का ग्राफ अच्छा है और उन्होंने संतुलित प्रदर्शन किया है। साइमन पैस्ले डे ने जनरल डायर की भूमिका में असली खलनायक का चेहरा दिखाया है, जो फिल्म को और अधिक यथार्थवादी बनाता है।
पूरी फिल्म अपने पहले हाफ में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के त्रासदी को जिस तरह से पर्दे पर उतारा है, वह दर्शकों को बांध कर रखती है। अपने दूसरे हाफ में जहां कोर्टरूम ड्रामा में आर माधवन अपनी अभिनय से दर्शकों को बांधने की कोशिश करते है। जालियांवाला बाग से एक रेप केस का कनेक्शन इतिहास में दर्ज है लेकिन इस पूरे सब प्लाट को समान्य तरीके से डील किया गया है। दूसरे हाफ के इस कमी को दमदार डायलांग और अभिनय के प्रभाव से कम करने की कोशिश की गई है।
अक्षय को इस इतिहास आधारित कहानी का हीरो दिखाने के लिए फिल्म काफी लिबर्टी लेती है। ये फैक्चुअली तो दाएं-बाएं हो सकता है, मगर एक फिल्म के तौर पर ‘केसरी 2’ जनता को कई ताली बजाने वाले मोमेंट्स पूरे स्टाइल के साथ डिलीवर करती है। सेकंड हाफ, फर्स्ट हाफ की सेटिंग से पूरी से न्याय नहीं कर पाती है।
ऐतिहासिक कहानियों पर बनी फिल्मों की असली कामयाबी इस बात में होती है कि फिल्म देखने के बाद आप उस घटना को और कितना जानना-समझना-पढ़ना चाहते हैं। इस पैमाने पर केसरी 2 पूरी तरह से खरी उतरती है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।

किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।