आदतें बदली हैं, हम नहीं: डिजिटल युग में भी ज़िंदा है किताबों का प्रेम
पढ़ने की आदत अब भी ज़िंदा है
डिजिटल क्रांति के बावजूद, किताबों से प्रेम कम नहीं हुआ।
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– वर्ल्ड कल्चर स्कोर इंडेक्स के अनुसार, भारत में पढ़ने का औसत समय सबसे अधिक है।
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डिजिटल टेक्स्ट ने बदला तरीका
व्हाट्सऐप, मेल और लिंक से अब किताबें साझा होती हैं।
स्क्रीन की ठंडी रोशनी बनाम कागज़ की सोंधी खुशबू
पढ़ने का अहसास बदला है, लेकिन उसका आकर्षण बना हुआ है।
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किताबें अब भी सोच, संवेदना और समाज परिवर्तन का ज़रिया हैं।
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डिजिटल मंचों ने संवाद को बनाया आसान और पारदर्शी।
विश्व पुस्तक दिवस का सार
पढ़ने को बढ़ावा देना, लेखकों का सम्मान, और किताबों की सांस्कृतिक भूमिका को पहचानना।
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