
“इंटरनेट को लोकतांत्रिक कहा जाता है, लेकिन जब कोई औरत इस स्पेस में बोलने की कोशिश करती है, तो अचानक उसे चुप कराने वाले नियम, नैतिकताएं और ट्रोल सक्रिय हो जाते हैं। क्या यह सचमुच आज़ादी है या बस पितृसत्ता का नया रूप?”
पिछले एक दशक में सोशल मीडिया और डिजिटल स्पेस ने महिलाओं को अभिव्यक्ति, सहभागिता और विरोध का एक नया मंच दिया है। लेकिन जैसे-जैसे महिलाओं ने इसमें सक्रिय उपस्थिति दर्ज की, पितृसत्ता ने भी अपने नए अवतार—साइबर पितृसत्ता—में प्रवेश कर लिया। यह पितृसत्ता अब न केवल महिलाओं की आवाज़ों पर सवाल उठाती है, बल्कि उन्हें “मौजूद” होने के लिए भी दोषी ठहराती है।
ऑनलाइन ट्रोलिंग, slut-shaming, डीपफेक, मॉर्फिंग, रेप थ्रेट्स, और गालियों की बाढ़—यह सब केवल असहमति या स्त्री विमर्श की उपस्थिति मात्र से शुरू हो जाता है।
महिलाएं और ऑनलाइन हिंसा: आंकड़ों की ज़ुबानी
Amnesty International (India) की 2021 की रिपोर्ट बताती है कि ऑनलाइन उत्पीड़न का शिकार होने वाली महिलाओं में 59% ने सोशल मीडिया छोड़ने या सीमित करने का निर्णय लिया।
UN Women के अनुसार, महिलाओं के ऑनलाइन उत्पीड़न में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, खासकर उन महिलाओं के साथ जो सार्वजनिक जीवन में हैं—जैसे पत्रकार, कलाकार, और सामाजिक कार्यकर्ता।
यह आंकड़े सिर्फ संख्या नहीं हैं; ये बताते हैं कि किस तरह इंटरनेट, जो बदलाव का जरिया बन सकता था, उसी पितृसत्तात्मक ढांचे को दोहराने लगा है।
जब सेलिब्रिटीज़ भी हार मान जाती हैं
1. सोना महापात्रा (गायिका)
#MeToo आंदोलन में मुखर भूमिका निभाने वाली सोना को सोशल मीडिया पर अभूतपूर्व ट्रोलिंग और गालियों का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणियाँ, धार्मिक उकसावे और चरित्र हनन जैसे हमले हुए। उन्होंने कई बार कहा कि सोशल मीडिया “मनोवैज्ञानिक हिंसा” का मैदान बन चुका है।
2. फातिमा सना शेख (अभिनेत्री)
दंगल फिल्म से प्रसिद्धि पाने वाली फातिमा को रमज़ान के दौरान शूटिंग की तस्वीरें डालने पर सोशल मीडिया पर धार्मिक और नैतिक आधार पर ट्रोल किया गया। उन्हें slut-shamed किया गया, और उन्होंने कुछ समय के लिए अपनी पोस्ट्स सीमित कर दीं।
3. सोशल मीडिया छोड़ चुकीं सोनाक्षी सिन्हा
2020 में सोनाक्षी ने इंस्टाग्राम पर खुलकर कहा कि वह “नफ़रत और नकारात्मकता से भर चुके डिजिटल स्पेस” से थक चुकी हैं। उन्होंने ट्विटर से अपने अकाउंट को डिएक्टिवेट कर दिया, और कहा, “मैं मानसिक स्वास्थ्य के लिए यह ज़रूरी समझती हूं।”
ये उदाहरण सिर्फ व्यक्तिगत अनुभव नहीं हैं; वे उस संस्थागत साइबर पितृसत्ता को उजागर करते हैं जिसमें महिला उपस्थिति को ‘स्वीकार’ नहीं किया जाता।
साइबर पितृसत्ता: एक संरचनात्मक विश्लेषण
साइबर पितृसत्ता सिर्फ गालियों या ट्रोलिंग तक सीमित नहीं है। यह एक बहुपरतीय संरचना है, एल्गोरिद्मिक बायस: सोशल मीडिया के एल्गोरिद्म महिलाओं की पोस्ट को कम विजिबिलिटी देते हैं, जबकि misogynistic कंटेंट वायरल होता है। ट्रोलिंग की शिकायतें अनदेखी होती हैं, जबकि महिलाओं के पोस्ट को ‘इनएप्रोप्रियेट’ बता कर हटा दिया जाता है।
‘कूल मिसोज़िनी’ का उभार: मीम और ह्यूमर के नाम पर स्त्री विरोधी सामग्री का सामान्यीकरण।
इन तमाम चुनौतियों के बावजूद, महिलाएं इंटरनेट पर एकजुट हो रही हैं, साझा कर रही हैं, और प्रतिरोध रच रही हैं, #MeTooIndia, #DigitalHinsa, #WhyLoiter जैसे अभियान स्त्री अनुभवों को सार्वजनिक विमर्श में ला रहे हैं।
डिजिटल फेमिनिज़्म ने नए नरेटिव्स बनाए हैं – जैसे हिंदी में नारीवादी ब्लॉग, इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब चैनल्स, और ऑडियो पॉडकास्ट।
कई महिलाएं अब साइबर सुरक्षा, डिजिटल लिटरेसी, और डेटा राइट्स पर भी सक्रिय हैं। अब क्या ज़रूरी है? – नीति, जवाबदेही और सामूहिकता
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही: एल्गोरिद्म ट्रांसपेरेंसी, कंटेंट मॉडरेशन में लैंगिक संवेदनशीलता ज़रूरी है। कानूनी और सामाजिक जागरूकता: IT एक्ट, महिला आयोग और साइबर हेल्पलाइन का उपयोग। मानसिक स्वास्थ्य समर्थन: डिजिटल उत्पीड़न का सीधा असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है—इसका इलाज भी ज़रूरी है। फेमिनिस्ट स्पेस की रचना: ऑनलाइन मंच जहाँ महिलाएं सुरक्षित, सुनी और समर्थित महसूस करें।
“डिजिटल चुप्पी” से “डिजिटल प्रतिरोध” तक
डिजिटल स्पेस अब सिर्फ टेक्नोलॉजी का हिस्सा नहीं, सामाजिक सत्ता-संरचना का विस्तार है। जब महिलाएं इस स्पेस में आती हैं, तो वह सिर्फ उपस्थिति नहीं, एक राजनीतिक कार्य होती है।
उनकी आवाज़ को खामोश करने की हर कोशिश, उनके प्रतिरोध को और अधिक वैधता देती है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम डिजिटल अधिकारों की बात करें, साइबर पितृसत्ता को पहचानें, और एक ऐसा इंटरनेट गढ़ें जो वाकई सबके लिए हो – बराबर और सुरक्षित।

मेरी कलम मेरे जज़्बात लिखती है, जो अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते, उनके अल्फाज़ लिखती है। Received UNFPA-Laadli Media and Advertising Award For Gender Senstivity -2020 Presently associated with THIP- The Healthy Indian Project.