सिर्फ गुलाबी नहीं है सिनीवाली की मछलियां
किताब का नाम- ‘गुलाबी नदी की मछलियाँ‘-
लेखिका- सिनीवाली
प्रकाशन- अन्तिका प्रकाशन
मूल्य- 180/- पेपरबैक
हिंदी कथा जगत में महिला कथाकारों के अभिव्यक्ति में ग्रामीण परिवेश में मौजूद कच्च-पक्की सड़क और धूल-मिट्टी से सने समाज का वृतांत, आधुनिकता और उदारीकरण के बाद के दौर में कमोबेश गायब सा हो गया है। जब आधुनिक भौतिक-संसाधन के साथ तुरंत पैसे कमाने की मानसिकता लोगों के विकासवाद का प्रतीक बन चुका है। वहां सिनीवाली का कहानी संग्रह ”गुलाबी नदी की मछलियां“ आंचलिकता की झलक के साथ, ग्रामीण समाज में बदली हुई चुनौतियों को समेटकर रचनात्मक प्रहार करती है। मौजूदा हिंदी कथा-साहित्य में ग्रामीण समाज के जीवन में हो रहे बदलाव और उस समाज की महत्वकांक्षा का विस्तार अदृश्य सा हो गया है, वहां सिनीवाली अपने कहानी संग्रह ”गुलाबी नदी की मछलियां“ ग्रामीण समाज में मौजूद संवेदनाओं का पुर्नपाठ करती हुई दिखती है।
कहानी संग्रह में पहली कहानी ”रहौं कंत होशियार“ ग्रामीण समाज में लालच से घिरे समाज में खेती-किसानी से जाता हुआ मोह, अपनी परेशानीयों से मुक्ति पाने की चाह के बाद भी खेती करनी विवशता और ग्रामीण समाज की तमाम संवेदनाओ-समस्याओं को एक सार्थक देने की कोशिश दिखती है। कहानी में जब तेजों कहता है कि धरती के तरह-तरह के सौदागर होते हैं। वो पेट भरती है सबका पर सुलगाती तो अपनी ही देह है। एक ही संवाद में बहुत कुछ कह देता है। तेजो जब ईट-भट्टी के लिए पैसा लेकर जब अपनी जमीन पट्टे पर ना दे उसे खुद जोतने का फैसला कर अधिकतर गांव वालों के उपहास का पात्र बन जाता है और धूर्त सेठ से ठंगे जाने पर गांव वालों का नेतृत्व भी करता है।
शीर्षक कहानी तो अलग ही नायाब कहानी है एक अपहरण किए गए नौजवान से अपहरण में शामिल परिवार की युवती लौगिया की मोहक प्रेम कहानी है गुलाब नदी की मछलियां। प्रेमी जोड़े के साथ पाठक मछली के तरह गोते लगाते हुए अंत में हैरान भी हो जाते है कि अरे ये क्या? कहानी में घटित प्रेम एक बेहद विरल क्षण से सृजित रूपक से बना है। अपहरण पर आधारित विषय पर पहले भी कहानियां लिखी गई हैं , लेकिन वे ज्यादातर अपराध के इर्द-गिर्द केन्द्रित रही है, उस महौल में प्रेम को बुनना ही किसी चुनौति से कम नहीं है।
अतिथीकहानी में जरूरी काम से शहर के बाहर गया पति के गैरमौजूदगी में, देर रात घर पर आए अनजान अतिथी को वह (जो दो छोटी बच्चियों की मां भी है), रात गुज़ारने के लिए अपने दो कमरों के घर में जगह दे तो देती है मगर आशंकाओं से चलते रात भर सो नहीं पाती है। अधजली बड़ी ही मार्मिक कहानी है जिसमें किसी प्रकार एक औरत पारिवारिक मजबूरी क शिकार होकर मानसिक कुंठा की शिकार हो जाती है और अपनों की ही दुश्मन बन जाती है। किसी को सब कुछ मिल के भी कुछ नहीं मिलता, भाभी घर में पति के रहते मां नहीं बन पाती और ननद को तो ब्याह के बाद से ही पति लेने नहीं आता।
हमलोगकहानी उन युवाओं की है जो घर बाहर के तानों से परेशान होकर काम की तलाश में गांवों से शहर की ओर पलायन तो कर बैठे हैं, मगर शहरों के दड़बेनुमा कमरों में जीवन बस काट रहे है। नायक हताशा और कुंठा से इस कदर भरा हुआ कि भावनात्मक मगर विवेकहीन फैसलों के तरह बढ़ने लगता है। कहानी इत्रदानसंपन्न घर की बेटी के ब्याह कर गांव के अमीर घर में जाने और फिर किस्मत के चलते गरीब हो जाने के वितांत को बयां करती है। करतब बायस कहानी गांव-देहात में चुनावी सरगर्मीयों का जायज़ा लेती है कि किस तरह पुलिस की आंखों से बचाकर शराब गांव में पहुंचती और बांटी जाती है, आम जनता पैदा और शराब दोनों तरफ से अपना उल्लू सीधा करती है और स्वयं के उल्लू बन जाने से बेखबर रहती है।
बंटवाराकहानी आधुनिक समाज का कठोर सत्य है जिसमें एक वृद्ध जोड़ा अपने ही बेटों के बीच एक ही घर में बंट जाता है। बालकृण्ण बाबू और सुभाषिणी को उनके बुढ़ापे में अलग होना पड़ता है पर उनका एक-दूसरे से बेहद प्रेम परिस्थितियों के बाद भी लुप्त नहीं हो पाता है। इसीतरह दुल्हा बाबू को व्यग्यात्मक कहानी कह सकते है जिसको सिनी वाली ने स्थानीय भाषा के प्रयोंग के साथ सबसे अधिक जींवत बना दिया है। शादी के उम्र निकल जाने के बाद देर से हो रही शादी में युवक परेशान है कि शादी से पहले गांव बिरादरी की एक बुढ़िया मरणासन्न हालात में है और अगर वो मर गई तो सामाजिकता निभाने के चक्कर में इस साल भी शादी रह जाएगी।
सिनीवाली अपने कहानी संग्रह ”गुलाबी नदी की मछलियां“ के हर रचना में एक अपनेपन का जुड़ाव पाठकों को देती है। हर कहानी की में आंचलिकता की झलक संग्रह की यूएसबी है। जैसे ग्राम संस्कृति आज भी शहरी बनावटीपन से बहुत दूर है वैसे ही गुलाबी नदी की मछलियां कहानी संग्रह के हर कहानी के हर पात्र पर केंद्रित विषयवस्तु में लोकजीवन की झलक मिलती है। कथ्य और भाषा शैली का वह प्रभाव पैदा करती है कि पाठक बहता ही नहीं बंधता भी चला जाता है। ग्रामीण समाज में आचंलिकता की पगडंडियो को पकड़कर अलग राह पकड़ने का कौशल लेखिका सिनीवाली को एक अलग कतार में खड़ा करती है और पाठकों के मन में एक अलग पहचान गढ़ती है। सम-विषम परिस्थितियों में सिनीवाली का कहानी संग्रह पाठकों को ग्रामीण जीवन में बदल रहे समाज से आत्मसाक्षात्कार कराने में सफल होती है, यहीं सिनीवाली जी की सबसे बड़ी उपलब्धि है।