
“बचपन की खुशबू, शायरी का जादू और भारतीय जीवन का हिस्सा – आम की कुछ खास कहानियाँ”
भारतीय समाज में हम सबों के पास अपनी प्रेम कहानी हो न हो, पर हमारे आसपास शायद ही कोई ऐसा हो, जिसके पास अपनी कोई आम की कहानी न हो।
फिर चाहे तपती धूप में आम के बगीचे में चोरी- छिपे तोड़ कर नमक लगाकर खायी टिकोले की कहानी हो, घरों में बनते आम के अचारों की कहानी हो, कच्चे आम को चावल के बोरियों या पुआल में छिपाकर पकाने की कहानी हो, चोरी-छिपे आम खाने की कहानी हो।
एक मात्र आम ही है, जो फल के साथ-साथ अपनी लकड़ी-पत्तों से लेकर अपनी गुठलियों के रूप में हमारी जिंदगी में शामिल होता है. आइए, आम के इस मौसम में रूबरू होते हैं चंद ‘आम कहानियों’ से, जो हमारे जीवन को खास बनाती हैं…
भारतीय संस्कृति में आम

आम भारत के धर्म, इतिहास, साहित्य यहां तक आम लोगों के जीवन में रचा-बसा हुआ है। अपने अलग-अलग अंदाज में, अपनी अलग-अलग कहानियों के साथ। शायद ही कोई और फल हो, जिसका लुत्फ परिवार के सभी सदस्य एक साथ उठा हों !
हमारे बचपन में बाल्टी में आम डूबोकर रखा जाता था और खाने के अंत में आम खाया जाता था। यह एक ‘आम उत्सव’ का एहसास दे जाता था। बड़े-बुजुर्ग हिदायत देते कि आम का चीप (एसिड) निकालकर खाओ। बचपन में नसीहतों का ख्याल किसे रहता है। आज बाजार में आम देखते ही एक साथ ऐसी न जाने कितनी ही यादें ताजा हो जाती हैं।
बाबरनामा में आम के प्रसंग उर्दू-हिंदवी के उस्ताद अमीर खुसरो ने आम को इस तरह से याद किया है, जिसे फक्र-ए- गुलशन का नाम दिया-
बरस बरस वो देश में आवे, मुंह से मुंह लगा रस पियावे । वा खातिर में खर्चे दाम, ऐ सखि साजन! ना सखि आम ॥
बाबरनामा ही नहीं, रामचरित्रमानस में गुरु विश्वामित्र और राम के बीच एक प्रसंग का उल्लेख मिलता है-
देखि अनूप एक अंवराई, सब सुपास सब भांति सुहाई
आमों का एक अनुपम बाग देखकर विश्वामित्र राम से कहते हैं, सुजान रघुवीर, मेरा मन कहता है कि यहीं रहा जाये।
आम के दीवान थे मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब तो आम के दीवान थे, गालिब दोस्तों के साथ आम खा रहे थे। गालिब के दोस्त जानते थे कि गालिब आमों के कितने रसिया हैं। इतने में एक गधा वहां से गुजरा, जो गुठलियों-छिलकों को सूंघकर आगे बढ़ गया। बस हकीम साहिब को गालिब को छेड़ने का बहाना मिल गया। उन्होंने कहा- मिर्जा आपने देखा, गधे भी आम नहीं खाते। गालिब ने तपाक से कहा- हां सच है, गधे ही आम नहीं खाते । उन्होंने अपनी शायरी में लिखा
रुत आम की आये और न हो यार
जी अपना है किसी रुत से बेजार
उन्होंने यहां तक लिखा कि आम के पेड़ का साया खुदा के साए की तरह है-
साया इसका हुमां (खुदा) का साया है, ख़ल्क (दुनिया ) पर वो खुदा का साया है।
उन्होंने ये भी लिखा-
बारे आमों का कुछ बयां हो जाये, खामा नखले – रतब फिशा हो जाये।

अकबर इलाहाबादी का किस्सा-ए-खास’
अकबर इलाहाबादी आम के मौसम में आम के सिवा कुछ और बात करना पसंद तक नहीं करते थे। उन्होंने अपने एक दोस्त को खत लिखा, जिनके आम के बाग थे. यह ‘किस्सा-ए-खास’ के नाम से प्रसिद्ध है-
नाम न कोई यार को पैगाम भेजिए
इस फसल में जो भेजिए, बस आम भेजिए. ऐसा जरूर हो कि उन्हें रखकर खा सकूं
पुख्ता (पके) अगर हो बीस तो दस खाम (कच्चे) भेजिए।
कहते हैं कि तैमूर लंग के जमाने में लंगड़ा आम पर प्रतिबंध था, जिस पर शायर जरीफ लखनवी ने लिखा-
तैमूर ने कस्दन कभी लंगड़ा न मंगाया,
लंगड़े के कभी सामने लंगड़ा नहीं आया…
मशहूर शायर ने सागर ख्यायामी ने इस पर चुटकी ली और कहा-
आम तेरी ये खुशनसीबी है,
वरना लंगड़े पे कौन मरता है।
रवींद्रनाथ टैगोर को भी आम बेहद पसंद थे और उन्होंने ‘आमेर मंजरी‘ कविता लिखी-
ओ मंजरी, ओ मंजरी, आमेर मंजरी क्या तुम्हारा दिल उदास है. तुम्हारी खुशबू में मिल कर मेरे गीत सभी दिशाओं में फैलते हैं और लौट आते हैं।
तुम्हारी डालों पर चांदनी की चादर तुम्हारी खुशबू को अपनी रोशनी में समेटती है, खुशबू से मदमस्त करने वाली दखिनी हवा हर दरवाजे के अंदर तक जाती है।
जोश मलीहाबादी विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गये, पर आमों के दरख्तों में पला-बढ़ा जीवन उनको हमेशा याद आता रहा. अपनी आत्मकथा “यादों की बारात” में उन्होंने लिखा-
आम के बागों में जब बरसात होगी, पुरखरोश मेरी फुरसत में लहू रोयेगी।
रानी विक्टोरिया महरूम रह गयीं आम के स्वाद से
कहते हैं कि रानी विक्टोरिया के लिए भारत से खास तौर पर आम मंगवाया गया था, लेकिन ब्रिटेन पहुंचने तक अधिकांश आम सड़ जाया करते थे। रानी विक्टोरिया आम के बेहतरीन स्वाद से महरूम रह गयीं।
ब्रिटिश राज के दौरान भारत में रहने वाले अंग्रेज जब आम खाते, तो उसका रस पूरे हाथ में फैलकर और जमीन गंदी हो जाती थी। उन्होंने इसे बाथरूम में खाना शुरू किया और आम ‘बाथरूम फ्रूट’ के नाम से मशहूर हुआ।
आम का पेड़ चूंकि गुठलियों से भी उग सकता है। इसलिए एक समय यह आदेश तक दिया गया कि आम खाने के बाद उसकी गुठलियों में छेद कर दिया जाये, ताकि पेड़ उगने का खतरा न रहे। वहीं, बिहार के भागलपुर जिले के धरहरा गाँव में कई सदियों से एक परंपरा है लड़की पैदा होने पर उस परिवार को दस आम के पेड़ लगाने की यह लड़कियों की सुरक्षा और उसके भविष्य की चिंताओं को कम करती है।
आम को लेकर हम सबों के बीच कही- अनकहीं न जाने कितने किस्से-कहानियां, बतकही और रूठना मनाना रहा है, जिसकी कोई गिनती ही नहीं। सबों के यादों के पिटारे में कच्चे-पक्के आम के न जाने कितनी यादें और बातें हैं,
यही कारण है कि आम हम सबों का ही नहीं पूरी दुनिया में खास है, इसलिए आम फलों का वो राजा है, जो प्रेम का प्रतीक की तरह है, जिसकी बादशाहत सदियों से बिना किसी फौज के देश की सीमाओं को तोड़कर विदेशों तक कायम है और यकीनन आगे भी कायम रहेगी।
आखिर में गुलजार साहब की लिखी एक कविता, जिसमें आम के दरख्त के बहाने जिंदगी का पूरा फलसफा ही उन्होंने कह डाला है.
मोड़ पर देखा है वो बूढ़ा इक आम का पेड़
कभी मेरा वाकिफ है, बहुत सालों से मैं जानता हूं….

लेखक वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक रह चुके है। संप्रति होम्योपैथी चिकित्सा-पद्धति के जरिए लोगों की सेवा। नई दिल्ली और मुबंई निवास