FeatureLifestyleSocietySpecial Cover Storrywomen;s RightWomen's

अच्छी लड़की की परिभाषा: आज की युवा महिलाएं क्या सोचती हैं?

क्या आज की लड़की सिर्फ ‘अच्छी’ बनने के लिए जी रही है? या अब वह अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने का साहस कर रही है?

समाज में ‘अच्छी लड़की’ होने की परिभाषा वर्षों से चली आ रही एक सांस्कृतिक अवधारणा है। यह वह फ्रेम है जिसमें महिलाओं को बचपन से ही ढालने की कोशिश की जाती है। लेकिन आज की पीढ़ी की युवा महिलाएं इस परिभाषा को सिर्फ चुनौती ही नहीं दे रही हैं, बल्कि उसे नए अर्थ भी दे रही हैं। इस लेख में हम जानने की कोशिश करेंगे कि आज की युवतियां ‘अच्छी लड़की’ को कैसे देखती हैं, और क्यों यह परिभाषा अब पुनरावलोकन की मांग करती है।

पारंपरिक सोच में ‘अच्छी लड़की’ वह होती थी जो आज्ञाकारी हो, अपने माता-पिता, भाई, पति और ससुराल वालों की बात माने, तेज़ आवाज़ में न बोले, घर की चारदीवारी में सिमटी रहे, अपनी इच्छाओं को त्याग दे, और खुद को दूसरों की खुशी में ढाल ले। उसके पहनावे, चाल-ढाल, बोलचाल और सपनों तक पर सामाजिक नज़र होती थी। वह बलिदान की मूर्ति मानी जाती थी—बिना सवाल पूछे, बिना विरोध किए।

 

नई पीढ़ी क्या कहती है?

आज की युवा महिलाएं ‘अच्छी लड़की’ की पारंपरिक परिभाषा को अब खारिज करने लगी हैं। उनके लिए यह एक ऐसा फ्रेमवर्क है जो महिलाओं को सीमित करता है, उनकी आज़ादी पर बंदिश लगाता है और उन्हें एक ‘आदर्श’ के नाम पर मानसिक बोझ उठाने को मजबूर करता है। वे खुलकर सवाल कर रही हैं—”अच्छी किसकी नजर में?” और “किस मूल्य-व्यवस्था के आधार पर?”

1. स्वतंत्रता की मांग

नई पीढ़ी की लड़कियां अब ‘अच्छी’ बनने की बजाय ‘स्वतंत्र’ बनने को प्राथमिकता दे रही हैं। वे अपने फैसले खुद लेना चाहती हैं—चाहे वह करियर का चुनाव हो, रिश्ते निभाने का तरीका हो, या अपने शरीर और जीवन के प्रति अधिकार की बात हो।

उनके लिए ‘अच्छी लड़की’ वह है जो देर रात अपनी सहेलियों के साथ घूमने जाए, पब में डांस करे, या ट्रेकिंग पर अकेले निकल जाए—और यह सब करते समय अपराधबोध या सामाजिक शर्मिंदगी महसूस न करे। आज की युवतियां यह कह रही हैं कि दूसरों की मंज़ूरी पाने के लिए अपनी आज़ादी का त्याग करना अब उन्हें मंज़ूर नहीं।

2. ‘ना’ कहने का अधिकार

‘ना’ कहना अब आज की लड़कियों के लिए विरोध नहीं, बल्कि आत्मसम्मान का प्रतीक बन चुका है। वे समझती हैं कि ‘हां’ कहने का अधिकार तब तक अधूरा है जब तक ‘ना’ कहने की आज़ादी न हो।

यह ‘ना’ किसी शादी के प्रस्ताव को ठुकराने से लेकर पारिवारिक दबाव, रिश्ते में शारीरिक या मानसिक शोषण, करियर बदलने या अपनी इच्छा से अकेले रहने तक फैला हुआ है। वे जानती हैं कि सहमति सिर्फ यौन संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के हर निर्णय में इसका महत्व है।

3. संवेदनशीलता, लेकिन अपनी शर्तों पर

नई पीढ़ी की महिलाएं यह मानती हैं कि दूसरों के प्रति सहानुभूति और विनम्रता होना ताकत की निशानी है, कमजोरी की नहीं। वे भावुक हो सकती हैं, परिवार से जुड़ी हो सकती हैं, लेकिन ये सब उनकी मर्ज़ी से और उनकी शर्तों पर होना चाहिए।

वे अब उस दौर को पीछे छोड़ चुकी हैं जहां ‘अच्छी लड़की’ का मतलब था चुपचाप सहना, दूसरों की खुशी के लिए खुद को मिटा देना। अब वे समझती हैं कि दूसरों की मदद करना तभी सही है जब वह उनके आत्मसम्मान को नुकसान न पहुंचाए। वे ‘अच्छी’ बनने की कोशिश में अपने सपनों और इच्छाओं को कुर्बान करने को तैयार नहीं हैं।

इन बदलावों का सीधा संदेश यही है—आज की युवतियां सिर्फ एक सामाजिक टेम्पलेट में फिट होने के लिए नहीं जी रही हैं। वे अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीने की आकांक्षा रखती हैं। उनके लिए ‘अच्छी लड़की’ अब वह नहीं है जो सब कुछ सह जाए, बल्कि वह है जो खुद के लिए आवाज़ उठाए।

सोशल मीडिया और आत्म-अभिव्यक्ति

इंटरनेट और सोशल मीडिया ने इस नई सोच को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई है। अब लड़कियां इंस्टाग्राम रील्स, ट्विटर थ्रेड्स या यूट्यूब व्लॉग्स के ज़रिए अपने विचार साझा करती हैं—वे समाज से सवाल करती हैं, पितृसत्ता को चुनौती देती हैं, और एक-दूसरे को सशक्त बनाती हैं।

जहां कभी एक लड़की के कपड़े, उसका बॉयफ्रेंड होना, या उसकी राय रखने की हिम्मत को ‘बदतमीज़ी’ माना जाता था, वहीं अब वही बातें आत्म-अभिव्यक्ति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुकी हैं।

चुनौतियां अब भी बरकरार

हालांकि शहरों में यह सोच तेज़ी से बदल रही है, लेकिन छोटे शहरों और गांवों में आज भी ‘अच्छी लड़की’ की परंपरागत परिभाषा भारी है। एक तरफ युवा महिलाएं अपने हक के लिए लड़ रही हैं, तो दूसरी ओर परिवार, समाज और व्यवस्था अब भी उनसे ‘मर्यादा’ की अपेक्षा रखते हैं। यह द्वंद्व उन्हें रोज़ झेलना पड़ता है।

आज की युवा महिलाओं की नजर में ‘अच्छी लड़की’ वह है जो ईमानदार हो—अपने विचारों, सपनों और भावनाओं के प्रति। वह अपने निर्णय खुद लेती है, अपनी गलतियों से सीखती है, और हर दिन खुद को बेहतर बनाती है—दूसरों की खुशी के लिए नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व के लिए।

समाज को अब यह समझने की ज़रूरत है कि अच्छाई की कोई एक तयशुदा परिभाषा नहीं हो सकती। जब तक ‘अच्छी लड़की’ होने की परिभाषा किसी महिला की स्वतंत्रता को सीमित करती है, तब तक वह परिभाषा अधूरी और अन्यायी है। नई परिभाषा यही है—एक ऐसी लड़की जो खुद तय करे कि उसके लिए अच्छा होना क्या है

anshu kumar

बेगूसराय, बिहार की रहने वाली अंशू कुमार ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमफिल और पीएचडी पूरी की है। उनकी कविताएँ सदानीरा, हिंदवी, हिन्दीनामा और अन्य पर प्रकाशित हुई है समकालीन विषयों पर उनके लेख नियमित रूप से अखबारों  और डिजिटल प्लेटफार्म में पब्लिश होते रहते हैं। वर्तमान में वह अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो के रूप में कार्यरत हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Translate »
इंस्टा मेड्स: सुविधा या शोषण? अच्छी लड़की का मतलब आज्ञाकारी, चुप, सहनशील, बलिदानी। वर्कप्लेस पर महिलाओं के पहनावे पर सवाल – कितना जायज़? ‘अच्छी महिला’ की परिभाषा डिजिटल मंच: नया लोकतांत्रिक सपना?