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गर्भवती महिलाओं पर वायु प्रदूषण का बढ़ता खतरा

वायु प्रदूषण के कारण समय पूर्व प्रसव, गर्भपात और नवजात मृत्यु दर में इजाफा

 

प्रदूषण गर्भवती महिलाओं, शिशुओं, छोटे बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अधिक खतरनाक है।

चीन के पीकिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन रिपोर्ट के लेखक ताओ जुए का कहना है शोध के आधार पर उक्त क्षेत्र में व्याप्त वायु प्रदूषण गर्भपात के कारणों में से एक है। यह निश्चित ही चिंताजनक है।

गर्भवती महिला के साथ-साथ उसके होनेवाले बच्चे पर भी प्रदूषण ग का प्रभाव पड़ता है। प्रदूषण गर्भवती महिलाओं, शिशुओं, छोटे बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अधिक खतरनाक है।

चीन के पीकिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन रिपोर्ट के लेखक ताओ जुए का कहना है शोध के आधार पर उक्त क्षेत्र में व्याप्त वायु प्रदूषण गर्भपात के कारणों में से एक है।

गर्भपात का किसी भी महिला पर गहरा मानसिक, शारीरिक और आर्थिक आघात पड़ता है। इसमें पोस्ट- नेटल डिप्रेसिव डिसॉर्डर, गर्भ के खराब होने तथा गर्भधारण से संबंधित खचों में बढ़ोतरी होने आदि की आशंका बढ़ जाती है। गर्भपात के खतरों को कम करके हमें लैंगिक समानता के अवसरों को भी बढ़ा सकते हैं।

PM2.5 का बढ़ता खतरा

भारत तथा पाकिस्तान जैसे उत्तरी मैदानी इलाकों में गर्भपात का एक अहम कारक प्रदूषण भी है हालांकि ग्रामीण इलाकों में रहनेवाली 30 से कम उम्र की महिलाओं के गर्भपात के प्रमुख कारणों में वायु में PM2.5 उल्लेखनीय रूप से बढ़ते हैं। प्रदूषण के स्तर में 10 ug/ m3 वृद्धि होने से गर्भपात के मामले तीन फीसदी तक बढ़ सकते हैं।

भारत में औसतन छह में से एक गर्भवती महिला निम्न जन्म भार वाले बच्चे को जन्म देती है। देश के उत्तरी और पश्चिमी भाग में यह स्थिति अधिक गंभीर है। अब महिलाएं पूर्व की तुलना में अधिक पौष्टिक भोजन खा रही हैं और पोषक सप्लीमेंट्स भी ले रही है।

आमतौर पर एक आदर्श गर्भावस्था की अवधि 38-40 हफ्तों की होती है और पांच से आठ औंस के पैदा होनेवाले शिशु का शारीरिक वजन आदर्श माना जाता है, लेकिन आठ औंस से कम वजन वाले शिशुओं को निम्न जन्मभार का माना जाता है।

मातृत्व एवं नवजात स्वास्थ्य असमानता’ विषय पर यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 5.1 फीसदी नवजात बच्चों की मौत गंभीर श्वास संक्रमण से हो जाती है।

वायु प्रदूषण और निम्न जन्म भार में काफी गहरा संबंध है। हालांकि यह साबित करना मुश्किल है कि नौ महीने की कुल गर्भावस्था अवधि में से किस महीने या हफ्ते में वायु प्रदूषण का गहरा प्रभाव पड़ा, फिर भी इस अध्ययन परिणाम की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

कम वजन और समय से पहले जन्म: गंभीर नतीजे

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टॉकहोम एनवायरन्मेंट इंस्टिच्यूट (SEI) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, दिन-ब-दिन बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में करीब तीन करोड़ बच्चे हर साल तय समय से पहले पैदा होते है।

इसका मतलब है कि प्रतिवर्ष समय पूर्व पैदा हुए बच्चों में से 18 फीसदी शिशु विशेष प्रदूषक तत्वों प्रदूषण से प्रभावित होते है।

समय पूर्व पैदा होनेवाले बच्चों में स्नायविक व्याधियां तथा स्थायी शारीरिक अक्षमता विकसित होने की संभावना अधिक होती है।बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दुनियाभर में करीब तीन करोड़ बच्चे हर साल तय समय से पहले पैदा होते है। प्रतिवर्ष समय पूर्व पैदा हुए बच्चों में से 18 फीसदी शिशु प्रदूषण से प्रभावित होते हैं।

हावर्ड यूनिवर्सिट में हुए एक महत्वपूर्ण अध्ययन के अनुसार, गर्भावस्था काल के तीसरे माह से जो महिलाएं विशेष प्रदूषक तत्वों के संपर्क में अधिक रहती हैं, उनके द्वारा पैदा हुए शिशुओं के ऑटिस्टिक होने की संभावना दोगुनी बढ़ जाती है, खास कर यदि ऐसी महिलाएं हाइवे के समीप रहती हों, जहां कि विशेष प्रदूषक तत्वों की उपस्थिति सबसे अधिक होती है।

इस अध्ययन में एक दिलचस्प बात यह भी सामने आयी कि गर्भावस्था के शुरुआती दो महीनों में महिलाएं यदि विशेष प्रदूषण कणों के उच्चतम स्तर के संपर्क में भी आती हैं, तो इससे उनके गर्भ में पल रहे शिशुओं पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।

वायु प्रदूषण दमा या अस्थमा का एक प्रत्यक्ष या प्रचलित कारक है। गर्भवती महिलाओं में इसका स्वरूप अधिक घातक हो सकता है। विभिन्न शोध अध्ययनों के आधार पर यह प्रमाण मिलता है कि वायु प्रदूषण के कारण महिलाओं तथा पुरुषों दोनों को ही प्रजनन संबंधी समस्याएं हो सकती है।

यही नहीं, प्रदूषित वायु में रहने के कारण मिसकैरेज के मामले भी काफी बढ़ जाते है। वर्तमान में वायु प्रदूषण का स्तर जिस तरह से बढ़ चुका है, उसमें खुद को या अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को पूरी तरह से सुरक्षित रख पाना किसी भी महिला के लिए असंभव है।

उसके प्रभावों को कम करने के लिए अब भी काफी कुछ किया जा सकता है विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें, तो दुनिया भर में करीब 92 फीसदी लोग वैसी जगहों पर रहते हैं, जहां की हवा पूरी तरह से शुद्ध नहीं है। यह भले ही देखने में साफ लगती हो, लेकिन यह संक्रमित हो सकती है।

अब वक्त आ गया है कि हम घर से बाहर निकलने से पहले अपने इलाके के एयर क्वालिटी इंडेक्स लेवल को चेक करके और उसके अनुसार सावधानी बरतें। आपको केवल बाहरी प्रदूषण के बार में ही चिंता नहीं करना है।


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इनडोर प्रदूषण: छिपा हुआ खतरा

अमेरिका की एनवॉयरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक औसत अमेरिकी व्यक्ति अपने जीवन का 90 फीसदी समय घर के अंदर रह कर बिताता है, जहां प्रदूषण का स्तर बाहरी प्रदूषण की तुलना में दो से पांच गुना अधिक होता है।

दरअसल, जब कभी भी हम घर के अंदर खाना पकाते हैं, धूपबत्ती, अगरबत्ती आदि जलाते हैं, आग जलाते हैं, स्प्रे पेंट / परफ्यूम का उपयोग करते हैं, उस वक्त हम जाने-अंजाने अपने आसपास के वायुमंडल को प्रदूषित कर रहे होते हैं।

इस प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए जहां तक संभव हो, अपने घर में प्राकृतिक क्लीनर का उपयोग करें पूजा के समय कपूरयुक्त दीया जलायें, भोजन को तेज आंच पर न पकाएं आदि. इस तरीके के छोटे-छोटे उपायों को अपना कर आप अपने आसपास के वातावरण को सुरक्षित कर सकते हैं।

हमारे शरीर का सबसे बड़ा अंग त्वचा होता है, जो कि अपने संपर्क में आनेवाले बाहरी तत्वों का 60-100 फीसदी हिस्से को अवशोषित कर लेता है। गर्भवती महिलाओं की, तो वे अपना खान-पान, अपनी सांसें और बाहरी वातावरण के संपर्क के परिणामस्वरूप उन पर पड़नेवाले प्रभावों को भी अपने गर्भस्थ शिशु के साथ शेयर करती हैं।

 


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rachana priyadarshini

16 वर्षों से लेखन एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेखन का अनुभव; लाडली मीडिया अवॉर्ड, NFI फेलोशिप, REACH मीडिया फेलोशिप सहित कई अन्य सम्मान प्राप्त; अरिहंत, रत्ना सागर, पुस्तक महल आदि कई महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों सहित आठ वर्षों तक प्रभात खबर अखबार में बतौर सीनियर कॉपी राइटर कार्य अनुभव प्राप्त करने के बाद वर्तमान में फ्रीलांसर कार्यरत.

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