डॉ. अंबेडकर और महिला सशक्तिकरण: वैधानिक प्रयासों की ऐतिहासिक यात्रा

सोशल मीडिया पर अक्सर रोजा लग्जबर्ग का एक कथन तैरता है कि – “जिस दिन औरतें अपने श्रम का हिसाब माँगेंगी, उस दिन मानव इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी चोरी पकड़ी जाएगी !”
दुनिया का इतिहास गैर-बराबरी का इतिहास रहा है। पितृसत्तात्मक व्यवस्थाओं ने किस तरह औरतों को हमेशा दोय्यम दर्जे का माना हैं। भारत में यह और अधिक भयानक रहा है। वर्ण व्यवस्था का विधान करने वाले ‘मनु’, वर्ण व्यवस्था के सबसे निचले वर्ण शूद्र और महिलाओं को एक ही श्रेणी में रखते हैं।
यही कारण है कि महिलाएं सदैव शूद्रों/अस्पृश्यों की भांति ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक व्यवस्था में शोषित होती रही। इसी भारी असमानता का परिणाम है कि जाति व्यवस्था जैसी कुरीति के खिलाफ खड़े होने वाले सारे समाज-सुधारक किसी ना किसी दृष्टि से महिलाओं के हक में खड़े नजर आते हैं।
डॉ. अंबेडकर इनमें सबसे बड़े नाम के तौर पर देखें जाने चाहिए। इतिहास में डॉ. अंबेडकर के कई पक्षों को देखा जाता हैं – मसलन अर्थशास्त्री, शिक्षक, संविधान निर्माता, गंभीर शोधार्थी और निपुण संसदीय राजनेता। मगर आधी आबादी के जीवन-स्तर को सुधारने के लिए उनके योगदानों की चर्चा आवश्यक है।
डॉ. अंबेडकर की वैचारिक नींव और नारी दृष्टिकोण

नारीवादी आंदोलन की शुरुआत से पहले ही अंबेडकर ने नागपुर में अखिल भारतीय वंचित वर्ग महिला सम्मेलन में अपने संबोधन में पुरजोर तरीके से कहा था कि – “मैं किसी समाज की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति के स्तर से मापता हूं।”(1)
यह भाषण बाबा साहेब की चिंतन प्रकिया को स्पष्ट करता हैं, जो कि 1916 ई. में कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ें गए उनके पेपर ‘कास्ट इन इंडिया : देयर मैकेनिज्म, जेनेसिस एंड डेवलपमेंट’ के आधारभूत तर्क से पुष्ट होता है।
मगर, अंबेडकर जितना विश्वास विचार-निर्माण में रखते थे, उससे कहीं ज्यादा प्रयास विचारों के धरातलतीकरण में किया करते थे। जब-जब उन्हें यह अवसर वैधानिक और सार्वजनिक जीवन में मिला, उन्होंने महिलाओं से संबंधी समस्याओं और मुद्दों को संजीदा ढंग से रखा। उनके सार्वजनिक जीवन तमाम सभाओं में महिलाएं मुख्य रूप से उपस्थित होती थी।
लंदन में गोलमेज सम्मेलन के दूसरे सत्र में भाग लेने के लिए जाने से पूर्व डॉ. अंबेडकर ने अपने दर्शकों में उपस्थित महिलाओं को विशेष रूप से संबोधित किया था।
उन्होने कई बार ऐसी सभाओं को संबोधित किया, जिनमें मुख्य रूप से बॉम्बे के ‘रेड लाइट एरिया’ कमाठीपुरा की महिलाएं भाग लेती थी। जहां वो लगातार उन्हें इस अपमानजनक जीवन को छोड़ने के लिए आग्रह करते थे।
वैधानिक प्रयास: मातृत्व लाभ और श्रमिक महिलाओं के अधिकार
उनके वैधानिक प्रयास बताते हैं कि वो महिलाओं की परिस्थितियों को बखूबी समझते थे और परिवर्तन पर अमादा थे। उनके प्रयासों से ही बॉम्बे विधानसभा में 1929 ई. में ‘मातृत्व लाभ विधेयक’ पारित हो सका। उन्होंने इस विधेयक के पक्ष में न्यायसंगत हस्तक्षेप किया। उन्होंने जच्चा महिलाओं को प्रसूति से पहले और बाद के अवकाश को अत्यंत आवश्यक बताया।
उन्होंने कामकाजी महिलाओं की वर्ग-परिभाषा को विस्तारित करते हुए ‘बॉम्बे प्रेसीडेंसी’ के कारखानों में काम करने वाली गरीब महिलाओं को समान रूप से लाभ दिए जाने की मांग रखी।(2)

इस अधिनियम के बाद मद्रास विधान परिषद् (1934 ई. में) समेत देश के बाकी हिस्सों में भी इस तरह के कानून बने।
इसी क्रम में, बाबा साहेब ने 1942 ई. से 1946 ई. के बीच वायसरॉय कार्यकारिणी परिषद में श्रम मंत्री रहते हुए ‘खान मातृत्व लाभ विधेयक’ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। इन अधिनियम के अंतर्गत खदान में काम करने वाली महिला-मजदूरों के आठ हफ्तों के प्रसूति-अवकाश का अधिकार मिला।
इस दौरान उनकी तनख्वाह आठ आना/प्रति दिन का निर्धारण था। इस अधिनियम के उल्लंघन पर पांच सौ रूपए के जुर्माने का प्रावधान, यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अंबेडकर महिलाओं के आधारभूत-अधिकारो के लिए कितने संजीदा थे।
इसी पद पर रहते हुए डॉ. अंबेडकर ने कोयला सुरंगों में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए साढ़े पांच फीट से कम गैलरी की खदानों में महिलाओं के काम को प्रतिबंधित किया।
इस काम के जोख़िम देखते हुए मार्च,1945 ई. में अलग से एक प्रसूति लाभ बिल प्रस्तुत किया। इसमें अधिक वेतनमान और ज्यादा प्रसूति-अवकाश का प्रकाशन रखा गया। इसके साथ कामगार महिलाओं के शिशुओं और बच्चों के लिए अलग से ‘कोयला खदान कल्याण कोष’ की स्थापना की।(3)
इस प्रकार श्रम-मंत्री के रूप में उन्होंने महिलाओं की दशा-सुधार की दिशा में ऐतिहासिक काम किए।
हिंदू कोड बिल और महिला अधिकारों की लड़ाई
स्वतंत्रता के बाद, डॉ. अंबेडकर जहां एक ओर स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री बने। वहीं दूसरी ओर, संविधान निर्माण की ‘प्रारूप समिति’ के अध्यक्ष का पद संभाला।
कानून मंत्री के रूप में उनका महत्वपूर्ण हस्तक्षेप ‘हिंदू कोड बिल’ था। हिंदुओं का पर्सनल कानून, मुसलमान ईसाइयों और पारसियों की तरह समान रूप से नहीं था। विवाह, उत्तराधिकार,दत्तक,निर्भरता और गुजारा आदि का कानूनी रूप से स्पष्ट न होना, स्त्रियों को और अधिक शोषित बना रहा था।
डॉ. अंबेडकर ने इस दिशा में पहल की और महिला-मुक्ति का यह क्रांतिकारी कानून 11 अप्रैल, 1947 ई. को संसद में प्रस्तुत किया। देश भर में रूढ़िवादियों ने इस बिल का देशव्यापी विरोध शुरू किया। यह विरोध भारतीय हिंदू समाज के मूल में बसे पितृसत्तात्मक रवैये को दिखाने लिए पर्याप्त थी। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का विरोध किया।
इस विरोध के कारण बिल पास ना हो पाया। अंबेडकर ने बिल के समर्थन में मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। हालांकि बाद में, यह बिल कुछ संशोधनों के साथ टुकड़ों में अलग-अलग सत्रो में पारित हुआ। अंबेडकर का हिंदू कोड बिल, उसका अटल समर्थन और मंत्री पद का त्यागपत्र – महिलाओं की स्थितियों में सुधार के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है।
अंबेडकर की दूरदृष्टि और स्त्री मुक्ति की नींव
स्त्रियों के प्रति यही रवैया भारतीय संविधान-निर्माण में देखा जा सकता है। दुनिया भर के इतिहास में महिलाओं को मताधिकार के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है। लेकिन, भारत में संविधान लागू होने के साथ ही महिलाओं को “सार्वभौमिक मताधिकार” का हक मिला।
यही नहीं बल्कि संविधान के अनुच्छेद 15 में समानता के अधिकार तले ‘धर्म, वंश, जाति’ के साथ ‘लैंगिक आधार’ पर भेदभाव का अंत भी शामिल हैं।
डॉ अंबेडकर का सार्वजनिक जीवन और वैधानिक प्रयास यह दर्शाते है कि वो अत्यंत दूरदर्शी थे। उनके बाद के दशकों में भारतीय स्त्री आंदोलन शूरू हुआ, जिस पर वर्ग-संकीर्णता के आरोप भी लगे।
इन सबसे पहले डॉ. अंबेडकर ना केवल महिलाओं को समाज के स्वतंत्र अंग के रूप में चिन्हित किया बल्कि तमाम जीवन महिलाओं की प्रगति, स्वतंत्रता और गरिमा के लिए काम करते रहे। उनके प्रयासों का ही फल है कि आज महिलाएं संवैधानिक रूप से बराबरी के दर्जे पर हक जता पा रही हैं।
स्रोत –
- डा. बाबासाहेब आंबेडकर: राइटिंग्स एवं स्पीचेस, वॉल्यूम 17, पृष्ठ 282
- डा. बाबासाहेब आंबेडकर: राइटिंग्स एवं स्पीचेस, वॉल्यूम 2, पृष्ठ 166-167
- डा. बाबासाहेब आंबेडकर: राइटिंग्स एवं स्पीचेस, वॉल्यूम 10, पृष्ठ 87-88

राजस्थान की रेत से ताल्लुक। कविता-कहानियों से प्यार। विभिन्न विषयों पर लगातार लेखन।दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन के बाद आजकल अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं।