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गरीब महिलाओं के लिए स्वास्थ्य चैटबॉट्स: डिजिटल हेल्थ में एक नई क्रांति

तकनीक के साथ बढ़ती महिलाओं की भागीदारी: डिजिटल साक्षरता और समय की चुनौतियों के बीच चैटबॉट्स कैसे बन रहे हैं शहरी गरीब महिलाओं की स्वास्थ्य साथी।

भारत में डिजिटल क्रांति ने स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और स्वरूप को बदलने की कोशिश की है। खासकर कोविड-19 महामारी के बाद, टेलीमेडिसिन, हेल्थ ऐप्स और चैटबॉट्स जैसी तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ा है। इन नवाचारों के बीच “स्वास्थ्य चैटबॉट्स” एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरे हैं।

भारत की शहरी गरीब महिलाओं में स्वास्थ्य चैटबॉट्स के प्रति रुचि तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, डिजिटल साक्षरता की कमी, समय का अभाव और तकनीकी जटिलताएं अभी भी इनके व्यापक उपयोग में बाधक बनी हुई हैं।

क्या हैं स्वास्थ्य चैटबॉट्स?

स्वास्थ्य चैटबॉट्स ऐसे डिजिटल टूल्स होते हैं जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के आधार पर काम करते हैं। ये यूज़र से बातचीत करके उन्हें स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान करते हैं, जैसे—बुखार के लक्षण, मासिक धर्म से जुड़ी समस्याएं, गर्भावस्था से जुड़ी सलाह या बच्चों की टीकाकरण संबंधी जानकारी।

ये चैटबॉट्स अक्सर व्हाट्सएप, फेसबुक मैसेंजर या विशेष ऐप्स के ज़रिए उपलब्ध होते हैं और कई बार स्थानीय भाषाओं में संवाद करने में भी सक्षम होते हैं।

शहरों में रहने वाली गरीब महिलाएं अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच, लंबी कतारें और परिवार की जिम्मेदारियों के कारण स्वास्थ्य केंद्र नहीं जा पातीं। इसके अलावा कई बार उन्हें अपने स्वास्थ्य को लेकर खुलकर बात करने में संकोच होता है। ऐसे में स्वास्थ्य चैटबॉट्स उन्हें निजता (privacy), त्वरित जानकारी और कम खर्च में सेवा प्रदान करते हैं।

उदाहरण के तौर पर, एक 30 वर्षीय घरेलू कामगार राधा  बताती हैं:

“काम से लौटते हुए बस में बैठकर जब मुझे पेट दर्द हो रहा था, तब मेरी बेटी ने व्हाट्सएप चैटबॉट से पूछा और मुझे घरेलू उपाय भी मिला और यह भी समझ आया कि कब डॉक्टर से मिलना ज़रूरी है।”

अध्ययन की मुख्य बातें

एक हालिया गैर-सरकारी संगठन द्वारा दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के कुछ निम्न आय वर्ग की बस्तियों में किया गया अध्ययन बताता है कि:

  • 68% महिलाओं ने पहली बार चैटबॉट्स के ज़रिए स्वास्थ्य जानकारी ली।

  • इनमें से 52% महिलाएं 25 से 40 वर्ष की उम्र के बीच थीं।

  • 70% महिलाओं ने बताया कि वे चैटबॉट के दोबारा उपयोग को लेकर इच्छुक हैं।

  • 43% महिलाओं ने यह भी कहा कि उन्हें फोन चलाना तो आता है लेकिन चैटबॉट के उपयोग में शुरुआत में कठिनाई हुई।

डिजिटल साक्षरता की बाधा

शहरी गरीब महिलाओं में स्मार्टफोन रखने की संख्या बढ़ रही है, लेकिन उसमें डिजिटल साक्षरता अभी भी सीमित है। महिलाएं अक्सर व्हाट्सएप जैसे टूल का इस्तेमाल तो करती हैं, लेकिन उन्हें चैटबॉट की कार्यप्रणाली को समझने में कठिनाई होती है। कई बार वे नहीं जान पातीं कि कौन-सी जानकारी भरोसेमंद है और कौन-सी नहीं।

यहां भाषा भी एक बड़ी बाधा है। अधिकांश हेल्थ चैटबॉट्स अभी भी अंग्रेज़ी या रोमन हिंदी में होते हैं, जो हिंदी-भाषी या अन्य भाषी महिलाओं को मुश्किल में डालता है। चैटबॉट की डिज़ाइनिंग में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और भाषा विविधता का ध्यान रखना आवश्यक है।

समय का अभाव और घरेलू जिम्मेदारियाँ

महिलाओं के लिए समय की कमी एक और प्रमुख बाधा है। अध्ययन में यह पाया गया कि अधिकांश महिलाएं दिन भर काम में व्यस्त रहती हैं—चाहे वह घर का काम हो, बच्चों की देखभाल हो या बाहर की मजदूरी। ऐसे में स्वास्थ्य चैटबॉट को इस्तेमाल करने का समय उन्हें रात को या सुबह जल्दी ही मिल पाता है।

यदि चैटबॉट में सवाल-जवाब की प्रक्रिया लंबी हो, या कई चरणों में संवाद हो, तो महिलाएं अधबीच में ही संवाद बंद कर देती हैं। इसलिए, हेल्थ चैटबॉट्स को इस तरह डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि वे कम समय में अधिक जानकारी सरल भाषा में दे सकें।

निजता और भरोसे का सवाल

स्वास्थ्य संबंधी जानकारी निजी होती है, खासकर जब बात महिलाओं की प्रजनन से जुड़ी समस्याओं की हो। चैटबॉट्स इस मामले में एक सुरक्षित विकल्प बन सकते हैं, बशर्ते उनका उपयोग करने वाली महिलाओं को यह भरोसा हो कि उनकी जानकारी किसी के साथ साझा नहीं होगी।

हालांकि, कई महिलाएं अभी भी चैटबॉट्स पर पूरी तरह भरोसा नहीं करतीं। उन्हें लगता है कि डॉक्टर से मिलना ही अंतिम समाधान है। इसलिए हेल्थ चैटबॉट्स को एक पूरक (supportive) सेवा के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि डॉक्टर के विकल्प के रूप में।

संभावनाएं और सुझाव

स्वास्थ्य चैटबॉट्स में महिलाओं के स्वास्थ्य सशक्तिकरण की बड़ी क्षमता है। इसके लिए कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं:

  1. स्थानीय भाषाओं में चैटबॉट्स उपलब्ध कराना – खासकर हिंदी, बंगाली, मराठी जैसी भाषाओं में।

  2. डिजिटल साक्षरता कार्यशालाएं – सामुदायिक केंद्रों पर महिलाओं को सिखाया जाए कि चैटबॉट का कैसे इस्तेमाल करें।

  3. ऑडियो आधारित चैटबॉट – जो पढ़ नहीं सकतीं, उनके लिए वॉइस कमांड आधारित सिस्टम तैयार किए जा सकते हैं।

  4. विश्वसनीय स्रोत से जुड़े चैटबॉट्स – जैसे सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं या विश्वसनीय NGO ताकि महिलाएं उन पर भरोसा कर सकें।

  5. कम डेटा खपत और ऑफलाइन विकल्प – कई बार डेटा या नेटवर्क की कमी भी बाधा बनती है।

भारत की शहरी गरीब महिलाएं धीरे-धीरे तकनीक के साथ जुड़ रही हैं। स्वास्थ्य चैटबॉट्स उनके लिए सशक्तिकरण का एक नया माध्यम बन सकते हैं, बशर्ते इन्हें उनकी ज़रूरतों, भाषा और समय को ध्यान में रखकर बनाया जाए। डिजिटल दुनिया में समावेशन (inclusion) तभी संभव है जब तकनीक को सभी के लिए सुलभ और सहज बनाया जाए। स्वास्थ्य चैटबॉट्स इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हो सकते हैं—यदि उन्हें सही दिशा में विकसित किया जाए।

saumya jyotsna

मेरी कलम मेरे जज़्बात लिखती है, जो अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते, उनके अल्फाज़ लिखती है। Received UNFPA-Laadli Media and Advertising Award For Gender Senstivity -2020 Presently associated with THIP- The Healthy Indian Project.

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