माहवारी स्वच्छता: क्यों जरूरी है खुलकर बात करना
28 मई को मनाया जाने वाला मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे माहवारी से जुड़े मिथकों को तोड़ने और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने का अभियान है। जानिए इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।

बीते 10 अप्रैल को तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले के एक स्कूल से खबर आयी कि वहां एक दलित बच्ची को उसके परीक्षा हॉल से बाहर बिठा कर परीक्षा देने के लिए मजबूर किया गया।
यह घटना हमें बताती है कि माहवारी आज भी हमारे समाज में एक ऐसा टैबू विषय है, जिसके बारे में खुल कर बात करना बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर बात नहीं होगी तो उपरोक्त हालात शायद ही कभी बदलेंगे।
विडंबना तो यह है कि जिस कोयंबटूर के निवासी अरुणाचलम मुरुगनाथम द्वारा वर्ष देश भर में ‘सैनिटरी पैड अभियान’ की शुरुआत की गयी, वहीं आज भी ऐसाी घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिल रही है।
ऐसे ही तमाम तरह की भ्रांतियों और परेशानियों को ध्यान में रखते हुए हर साल 28 मई को मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य समाज में पीरियड्स को लेकर जागरूकता बढ़ाना है। इसके साथ ही, इससे जुड़े अंधविश्वास को खत्म करना और महिलाओं को सुरक्षित और स्वच्छ पीरियड्स को लेकर बताना है।
इसके लिए प्रति वर्ष माहवारी स्वच्छता से जुड़े एक थीम या विषय का निर्धारण किया जाता है और देश-दुनिया में उस पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
इस वर्ष 2025 की थीम है- “एक साथ मिलकर #PeriodFriendlyWorld बनाएं”। इस थीम के अनुसार, हम सभी की एक जिम्मेदारी बनती है कि हम एक साथ मिलकर दुनिया को पीरियड फ्रेंडली बनाने का प्रयास करें, जहां हर कोई इस विषय पर खुल कर बात या व्यवहार कर सके।
माहवारी स्वच्छता के अभाव में महिला स्वास्थ्य पर पड़ता प्रभाव
माहवारी स्वच्छता का सीधा प्रभाव महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। यदि स्वच्छता का सही ध्यान न रखा जाए, तो कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं:
संक्रमण का खतरा : अस्वच्छ माहवारी प्रबंधन से यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) और रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन (RTI) का खतरा बढ़ जाता है।
त्वचा संबंधी समस्याएं : गंदे या लंबे समय तक इस्तेमाल किए गए सैनिटरी उत्पादों से रैशेज, खुजली और फंगल इंफेक्शन हो सकता है।
एचपीवी संक्रमण का खतरा : बार-बार संक्रमण से गर्भाशय ग्रीवा (cervix) में सूजन हो सकती है, जिससे एचपीवी जैसे गंभीर संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य : माहवारी से जुड़ी शर्म और अस्वच्छता से तनाव, हीन भावना और आत्मसम्मान में कमी आ सकती है।
शिक्षा और कार्यक्षमता पर प्रभाव : कई लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित माहवारी प्रबंधन की कमी के कारण स्कूल या कार्यस्थल से अनुपस्थित रहती हैं।
इसी कारण माहवारी स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ाना जरूरी है ताकि महिलाएं बिना किसी संकोच के अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें।
माहवारी स्वच्छता अभियान का इतिहास
माहवारी स्वच्छता अभियान का इतिहास जागरूकता और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण रहा है। वर्ष 2014 में एक जर्मन एनजीओ ‘वॉश यूनाइटेड’ ने माहवारी स्वच्छता दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इस अभियान का उद्देश्य महिलाओं और किशोरियों को माहवारी के दौरान स्वच्छता बनाए रखने के लिए सही जानकारी और सुविधाएं प्रदान करना है।
भारत में, यूनिसेफ और अन्य संगठनों ने माहवारी से जुड़े मिथकों को दूर करने और स्वच्छता प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। झारखंड जैसे राज्यों में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है, जहां शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि वे समुदायों में जागरूकता फैला सकें।
इसके अलावा, टीचर्स ऑफ बिहार और यूनिसेफ ने मिलकर रेड डॉट चैलेंज और माहवारी स्वच्छता दिवस क्विज जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की है, जिससे लोग माहवारी से जुड़े मुद्दों पर खुलकर चर्चा कर सकें।
माहवारी स्वच्छता अभियान से जुड़े अब तक के महत्वपूर्ण कदम
महिलाओं और किशोरियों को जागरूक करने के लिए सामाजिक एवं राजनीतिक माहवारी स्वच्छता अभियान से जुड़े कई सारे कदम उठाये गये हैं। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं :
माहवारी स्वच्छता दिवस : हर साल 28 मई को माहवारी स्वच्छता दिवसमनाया जाता है, जिसमें कई गैर-सरकारी संगठन, स्कूल और सरकारी संस्थाएं जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करती हैं।
सुलभ इंटरनेशनल : सुलभ इंटरनेशनल एक प्रमुख सामाजिक सेवा संगठन है, जिसकी स्थापना डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने 1970 में की थी. यह संगठन स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में कार्य करता है।
इस संगठन ने भारत में कम लागत वाले सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराने के लिए पहल की है। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को सशक्त बनाने और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद करता है।
भारतीय समाज में महिलाओं पर नैतिक दबाव,आत्म-स्वीकृति का संघर्ष
पैडमैन अभियान : पैडमैन अभियान भारत में माहवारी स्वच्छता को लेकर जागरूकता फैलाने वाला एक महत्वपूर्ण पहल है। यह अभियान महिलाओं और किशोरियों को सुरक्षित और सुलभ सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने और माहवारी से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने पर केंद्रित है। इस अभियान की शुरुआत अरुणाचलम मुरुगनाथम द्वारा शुरू किया गया था, जिन्होंने कम कीमत वाले सैनिटरी पैड बनाने की तकनीक विकसित की।
फिल्म पैडमैन (2018) ने माहवारी से जुड़े सामाजिक मुद्दों को उजागर किया। वर्तमान में कई सामाजिक कार्यकर्ता और संगठन कम लागत वाले सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने और माहवारी से जुड़ी गलत धारणाओं को दूर करने के लिए काम कर रहे हैं
हैप्पी टू ब्लीड : वर्ष 2015 में दिल्ली निवासी निकिता आज़ाद द्वारा केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर के एक अधिकारी द्वारा महिलाओं के प्रवेश को लेकर विवादित बयान के विरोध में निकिता ने “हैप्पी टू ब्लीड” नामक ऑनलाइन अभियान शुरू किया था। इसमें महिलाओं को सेनेटरी नैपकिन के साथ अपनी तस्वीरें साझा करने और माहवारी को लेकर समाज में फैली गलत धारणाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित किया गया।
इस अभियान का उद्देश्य माहवारी को लेकर शर्म और सामाजिक वर्जनाओं को खत्म करना, महिलाओं के अधिकारों और समानता की वकालत करना और धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंधों को चुनौती देना था।
उड़ान योजना : यह योजना भारत सरकार द्वारा शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य महिलाओं और किशोरियों को माहवारी स्वच्छता के प्रति जागरूक करना और मुफ्त सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध कराना है।
माहवारी स्वच्छता आंदोलन से जुड़े इन तमाम पहलों ने वैश्विक स्तर पर महिलाओं और किशोरियों के स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इन तमाम प्रयासों के बावजूद हमें आये दिन ऐसी घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिल जाती है, जहां किसी किशोरी, युवती या महिला को माहवारी की वजह से किसी तरह का भेदभाव झेलना पड़ता है।
हमारा समाज अब भी इस बात को आसानी से पचा नहीं पा रहा है कि जिस तरह से लड़को का प्यूबर्टी एज आता है, उसी तरह से लड़कियां भी प्यूबर्टी फेज से गुजरती हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि लड़कों में उस उम्र का बदलाव दाढी-मूंछ उगने, सीने पर बाल उगने, आवाज भारी होने आदि के रूप में दिखता है, वहीं लड़कियों में यह माहवारी शुरू होने, प्रजनन अंगों का विकास होने आदि रूप में दिखता है।
ऐसे में अगर किशोरों के शारीरिक परिवर्तन समाज के लिए ‘सामान्य’ हैं, तो फिर किशोरियों के शारीरिक परिवर्तन अशुद्ध क्यों और कैसे हो सकते हैं? माहवारी किसी स्त्री को अपने अंदर एक नवजीवन का सृजन करने में समर्थ बनाती है और सृजनात्मकता कैसी भी हो, वह सदैव अच्छी होती है!
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16 वर्षों से लेखन एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय. देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेखन का अनुभव; लाडली मीडिया अवॉर्ड, NFI फेलोशिप, REACH मीडिया फेलोशिप सहित कई अन्य सम्मान प्राप्त; अरिहंत, रत्ना सागर, पुस्तक महल आदि कई महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों सहित आठ वर्षों तक प्रभात खबर अखबार में बतौर सीनियर कॉपी राइटर कार्य अनुभव प्राप्त करने के बाद वर्तमान में फ्रीलांसर कार्यरत.