कार्यस्थल पर महिला सशक्तिकरण: समानता, सुरक्षा और आत्मविश्वास की कहानी

गुणवत्तापूर्ण उत्पादकता के लिए यह आवश्यक है कि कार्यस्थल पर कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाए — चाहे वह संगठित क्षेत्र हो या असंगठित। कार्यस्थल पर समानता, स्वास्थ्य और सुरक्षा के आदर्श मानकों का पालन करके मानव संसाधनों का प्रभावी उपयोग किया जा सकता है।
इसी आधार पर परिवार से लेकर समाज, समाज से शहर, शहर से देश और अंततः दुनिया की समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है। यही हर जिम्मेदार संस्था की एक लोकतांत्रिक पहल होनी चाहिए।
कामकाजी महिलाओं की दोहरी चुनौती

कामकाजी महिलाएं, चाहे अविवाहित हों या विवाहित, अक्सर दोहरी जिम्मेदारियों से जूझती हैं। उन्हें परिवार और कार्यस्थल दोनों के लिए पर्याप्त समय न दे पाने की ग्लानि के साथ-साथ स्वयं को साबित करने का लगातार दबाव भी झेलना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, कार्यस्थल का प्रतिकूल माहौल उनके लिए एक और गंभीर चुनौती बन जाता है।
विशाखा दिशानिर्देश, मातृत्व अवकाश और पेरेंटल लीव जैसे प्रावधान वर्कप्लेस को लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में उठाए गए सकारात्मक कदम हैं, फिर भी सुरक्षा, स्वास्थ्य और समानता के मामलों में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है — न केवल महिलाओं, बल्कि पुरुषों के लिए भी।
अनजाने में सहा गया उत्पीड़न
अक्सर देखा जाता है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ अनुचित व्यवहार होता है, और वे यह पहचान नहीं पातीं कि ये घटनाएं किस श्रेणी में आती हैं। कई बार नौकरी की मजबूरी में वे असहज परिस्थितियों को भी सहन करती हैं, जिससे उत्पीड़न और बढ़ जाता है।
महिलाओं को यह जानना आवश्यक है कि किस प्रकार का शारीरिक या मानसिक व्यवहार अस्वीकार्य है — जैसे कि छल, अलगाव, काम की उपेक्षा, प्रलोभन, आक्रामकता या धमकी। ये सभी तत्व कार्यस्थल के माहौल को सभी कर्मचारियों के लिए विषाक्त बना सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि कार्यस्थल को ऐसा बनाया जाए जहां हर किसी को सम्मान और सुरक्षा मिले।
अनुकूल वातावरण का अभाव
भारत में महिलाओं की श्रमिक भागीदारी केवल 37% है। संगठित और असंगठित क्षेत्रों में महिलाओं के कार्य को अक्सर कम आंका जाता है। महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल की कमी उनके आत्मविश्वास और कार्य क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
चेन्नई के एक सरकारी बैंक में कार्यरत अर्चना (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि उनके कार्यालय में महिलाओं के लिए स्वच्छ टॉयलेट की कमी उनके लिए रोज़मर्रा की एक बड़ी चुनौती है। इससे वे पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से भी कतराती हैं। यह समस्या न केवल स्वास्थ्य पर असर डालती है, बल्कि कार्यस्थल को उनके लिए असहज भी बना देती है।
समान कार्य, समान वेतन — अब भी एक सपना

‘मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट’ के अनुसार, समान कार्य के लिए वेतन में असमानता पूरी दुनिया में मौजूद है। केवल उद्योग ही नहीं, बल्कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की योग्यता और योगदान को कमतर आंका जाता है। बॉलीवुड जैसी ग्लैमरस इंडस्ट्री में भी अभिनेत्रियां यह मुद्दा बार-बार उठाती रही हैं।
एक ही काम के लिए पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग वेतन दिया जाता है। इससे काम के प्रति उदासीनता पैदा होती है। वे कहती हैं कि वे हमेशा अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास करती हैं, लेकिन जब मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिलता, तो मनोबल गिरता है।
आत्मविश्वास: सफलता की कुंजी
महिलाओं को अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए आत्मविश्वास की बेहद आवश्यकता होती है। आत्मविश्वास की कमी के कारण वे अपनी वास्तविक क्षमताओं को पूरी तरह नहीं पहचान पातीं। एक प्रेरक, सकारात्मक और स्वस्थ कार्य वातावरण उन्हें हर चुनौती का सामना करने का साहस देता है।
दिल्ली के एक विश्वविद्यालय में कार्यरत कंचन सिन्हा बताती हैं कि उन्हें स्थायी नियुक्ति नहीं मिलने के कारण मातृत्व अवकाश के दौरान बिना वेतन छुट्टी लेनी पड़ी। यह भेदभाव उनके आत्मविश्वास को प्रभावित करता है। स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों में इस प्रकार का भेदभाव चिंताजनक है।
हम कर सकते हैं!
1976 के वियतनाम युद्ध के बाद, वहां पुरुषों की संख्या में भारी गिरावट आई। तब महिलाओं ने आजीविका की जिम्मेदारी उठाई और बड़ी संख्या में कामकाजी बन गईं। आज वियतनाम में महिलाओं की श्रमिक भागीदारी 73% है। वहां हर दूसरी महिला अर्थव्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभा रही है।
ऐसी ही स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी देखी गई थी, जब पुरुषों के युद्ध में चले जाने के बाद महिलाओं ने फैक्ट्रियों में काम संभाला। उन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। उस समय का प्रेरणास्रोत बनी ‘रोज़ी द रिवेटर’, जिसकी टैगलाइन थी — हम कर सकते हैं!

बेगूसराय, बिहार की रहने वाली अंशू कुमार ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एमफिल और पीएचडी पूरी की है। उनकी कविताएँ सदानीरा, हिंदवी, हिन्दीनामा और अन्य पर प्रकाशित हुई है समकालीन विषयों पर उनके लेख नियमित रूप से अखबारों और डिजिटल प्लेटफार्म में पब्लिश होते रहते हैं। वर्तमान में वह अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में रिसर्च फेलो के रूप में कार्यरत हैं।