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“महिलाओं की सुरक्षा: कब मिलेगा डर और अन्याय से मुक्ति?”

भारत सहित दुनियाभर में महिलाएं आज अपनी काबिलियत के बल पर हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही हैं। इसके बावजूद, उन्हें अब भी आत्मसम्मान और सुरक्षा को लेकर आशंकाएं बनी रहती हैं। घर से बाहर निकलते ही मासूम बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं तक को छेड़छाड़, अश्लील हरकतें, बेहूदा टिप्पणियां और जबरन छूने जैसी असहनीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। हर दिन घर की दहलीज पार करते समय उनके मन में यही सवाल होता है—क्या फलां जगह जाना सुरक्षित है या नहीं? आखिर कब और कैसे इस पीड़ा का अंत होगा?


केस 1:

बिहार पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी की नाबालिग बेटी के साथ उसके ही घर में कार्यरत 50 वर्षीय रसोइए द्वारा की गई छेड़छाड़ की घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया। इस मामले की जानकारी खुद बच्ची ने महिला पुलिस अधिकारी को फोन कर दी थी।

केस 2:

राजस्थान के केलवाड़ जिले में रहने वाली 17 वर्षीय छात्रा ने अपने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली। उसकी मां ने पुलिस को बताया कि पड़ोस का एक लड़का कई दिनों से उनकी बेटी के साथ छेड़छाड़ कर रहा था, जिससे वह मानसिक रूप से बहुत परेशान थी। संभवतः इसी कारण उसने यह खतरनाक कदम उठाया।


असुरक्षित वातावरण की बेड़ियाँ

यह एक अस्वीकार्य सच्चाई है कि असुरक्षित माहौल और उसका भय न जाने कितनी युवतियों और महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद कर देता है। कई बार अभिभावक कम उम्र में ही बेटियों की शादी कर देने का निर्णय ले लेते हैं, या तब तक उन्हें घर में ही सीमित रखते हैं जब तक कि उन्हें निजी वाहन या अन्य सुरक्षा उपाय नहीं मिल जाते। ऐसी घटनाएं महिलाओं के बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन हैं, जहां उनकी कोई गलती नहीं होती, फिर भी उन्हें अपने मान-सम्मान की कीमत चुकानी पड़ती है। कभी-कभी ये मामले बलात्कार या एसिड अटैक जैसी भयावह स्थितियों तक पहुंच जाते हैं।

इन घटनाओं का महिलाओं की मानसिक स्थिति पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है, इसका वैज्ञानिक अध्ययन भले ही कम हुआ हो, लेकिन यह निश्चित है कि ये घटनाएं उनके आत्मविश्वास को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती हैं।


हर उम्र, हर वर्ग की समस्या

छेड़छाड़ की समस्या किसी एक आयु, वर्ग, जाति या धर्म तक सीमित नहीं है। देश-दुनिया की लगभग हर लड़की कभी-न-कभी इसका शिकार बनती है। हैरानी की बात यह है कि ऐसी हरकतों में सिर्फ अशिक्षित या बेरोजगार पुरुष ही नहीं, बल्कि पढ़े-लिखे और संभ्रांत तबके के लोग भी शामिल होते हैं। यह विकृत मानसिकता महिलाओं को मानसिक, शारीरिक और मौखिक पीड़ा देती है।


पीड़िता को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति

अक्सर पीड़िता और उसके परिवार के लिए अपराध की शिकायत करना बेहद मुश्किल होता है। समाज में ऐसे तर्क गढ़े जाते हैं कि महिलाएं खुद ही दोषी हैं—”उसने क्या पहना था?”, “वह वहां क्या कर रही थी?” या “इतनी रात को बाहर क्यों निकली?” जैसे सवाल उनके चरित्र पर संदेह पैदा करते हैं। नतीजतन, बहुत-सी महिलाएं चुप्पी साध लेती हैं, जिससे अपराधियों का हौसला और बढ़ जाता है।


कानूनी और सामाजिक विरोध जरूरी

भारतीय दंड संहिता में छेड़छाड़ को अपराध की श्रेणी में रखा गया है। धारा 354 ए और बी के अंतर्गत इसकी शिकायत दर्ज की जा सकती है। ‘विशाखा गाइडलाइंस’ के तहत हर संस्थान में शिकायत निवारण समिति की स्थापना की सिफारिश की गई है। लेकिन इसके बावजूद महिलाएं सुरक्षा को लेकर कभी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पातीं।

शिकायतों के निपटारे की प्रक्रिया इतनी कठिन और अपमानजनक होती है कि बहुत-सी महिलाएं या तो घर में बंद हो जाती हैं या आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं।


सामाजिक समर्थन की ज़रूरत

जब कोई महिला साहस कर अपराध के विरुद्ध आवाज उठाती है, तो समाज के लोग अक्सर उसके साथ खड़े नहीं होते। यह चुप्पी अपराधियों को बल देती है और पीड़िताओं को कमजोर करती है। इसलिए ज़रूरी है कि समाज संगठित होकर ऐसे अपराधों का विरोध करे। ये घटनाएं “छोटी बात” नहीं हैं। इनके प्रति संवेदनशीलता और सामूहिक प्रतिकार ही महिलाओं की सुरक्षा और सार्वजनिक जीवन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है।

इस लेख को 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

Pratyush Prashant

किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।

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