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PCOS और समाज की चुप्पी: बीमारी के इर्द-गिर्द फैला मौन क्यों घातक है?

PCOS और सामाजिक चुप्पी | महिलाओं के स्वास्थ्य पर एक जरूरी बात

जब शरीर तकलीफ में होता है, तब आवाज़ उठाना ज़रूरी हो जाता है। लेकिन जब समाज उस आवाज़ को दबा देता है, तो तकलीफ सिर्फ शारीरिक नहीं, सामाजिक भी बन जाती है।

Polycystic Ovary Syndrome (PCOS) एक ऐसी बीमारी है, जिससे भारत में हर पाँचवीं महिला जूझ रही है। लेकिन जितनी आम यह बीमारी है, उतनी ही गहरी है इसके चारों ओर पसरी चुप्पी।

PCOS कोई ‘अजीब’ या ‘शर्मनाक’ बीमारी नहीं है। यह महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर हार्मोनल स्थिति है, जिसके असर शरीर, मानसिकता और सामाजिक जीवन तीनों पर होते हैं। फिर भी इसे लेकर हमारे समाज में एक चुप्पी है—एक ऐसी चुप्पी जो शरीर को बीमार और आत्मा को अकेला करती है।


PCOS क्या है और यह कैसे प्रभावित करता है?

PCOS एक हार्मोनल असंतुलन है जिसमें अंडाशय में छोटे-छोटे सिस्ट बन जाते हैं। इसके कारण:

  • मासिक धर्म अनियमित हो जाता है

  • चेहरे और शरीर पर अनचाहे बाल उग आते हैं

  • वजन अचानक बढ़ता है

  • पिंपल्स और त्वचा संबंधी समस्याएं होती हैं

  • गर्भधारण में कठिनाई आती है

लेकिन इन लक्षणों से बड़ी बात यह है कि यह बीमारी महिलाओं की पहचान, आत्मविश्वास और सामाजिक स्थिति को भी प्रभावित करती है।


बीमारी से बड़ी सामाजिक चुप्पी

1. प्रजनन स्वास्थ्य पर शर्म का पर्दा

महिलाओं के मासिक धर्म और हार्मोन से जुड़ी किसी भी समस्या को शर्म का विषय बना दिया गया है। यही कारण है कि बहुत सी लड़कियाँ और महिलाएं अपने लक्षणों को छुपाती हैं, या उन्हें सामान्य मानकर टाल देती हैं।

2. ‘माँ बनना ही औरत की पहचान’ वाली सोच

PCOS से जुड़ी बांझपन की संभावना, समाज की उस सोच से टकरा जाती है जो महिलाओं की पहचान को सिर्फ माँ बनने से जोड़ती है। इससे यह बीमारी एक कलंक बन जाती है।

3. सौंदर्य के नाम पर शारीरिक नियंत्रण

PCOS में जब वजन बढ़ता है या चेहरे पर बाल आते हैं, तो समाज सवाल करने लगता है—
“चेहरा खराब हो गया है”,
“इतनी मोटी क्यों हो गई?”
यह शरीर की बीमारी को महिला की ‘लापरवाही’ बना देता है।


पितृसत्ता की भूमिका: बीमारी को बनाना एक औज़ार

PCOS को पितृसत्तात्मक समाज एक और हथियार की तरह इस्तेमाल करता है:

  • शादी से पहले ‘फिटनेस’ और ‘फर्टिलिटी’ जांच

  • बीमारी को छुपाना ताकि रिश्ता न बिगड़े

  • महिला की ‘उपयुक्तता’ को उसकी गर्भधारण क्षमता से जोड़ना

इससे बीमारी एक गुप्त कलंक बन जाती है, जिससे महिला अकेली लड़ती है।


चुप्पी का असर: इलाज में देरी, मानसिक तनाव बढ़े

PCOS के लक्षण दिखने के बाद भी:

  • महिलाएं डॉक्टर के पास देर से जाती हैं

  • खुद को दोष देती हैं

  • मानसिक तनाव, डिप्रेशन और आत्म-अविश्वास में घिर जाती हैं

  • कई बार तब तक इंतज़ार होता है जब तक शादी के बाद गर्भधारण असंभव न हो जाए


अनुभवों की आवाज़: जब महिलाएं बोलती हैं

आज कुछ महिलाएं सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा कर रही हैं—

“मैं PCOS से जूझ रही हूँ, और इसमें शर्म की कोई बात नहीं है।”

अभिनेत्री सोनम कपूर से लेकर कई यूट्यूबर्स और महिला एक्टिविस्ट्स तक, सभी यह दिखा रही हैं कि इस बीमारी को छुपाने से नहीं, साझा करने से रास्ता निकलता है।

हमें समाज को यह समझाना होगा कि PCOS कोई ‘गुप्त बीमारी’ नहीं है। यह एक सामान्य लेकिन गंभीर स्वास्थ्य स्थिति है जिसका समय पर इलाज और समझ दोनों ज़रूरी हैं।


 समाधान की दिशा में कदम

  • स्कूलों में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा

  • महिलाओं के लिए संवेदनशील हेल्थकेयर सेंटर

  • समर्थन समूहों की स्थापना और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर जागरूकता

  • परिवारों में संवाद और सहानुभूति की संस्कृति

स्वास्थ्य कोई शर्म की बात नहीं है। शरीर जब बोल रहा हो, तो समाज को सुनना चाहिए। PCOS पर बात करके हम न सिर्फ बीमारी, बल्कि पितृसत्ता से भी लड़ सकते हैं।

Binay Shanker Lal Das

लेखक वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक रह चुके है। संप्रति होम्योपैथी चिकित्सा-पद्धति के जरिए लोगों की सेवा। नई दिल्ली और मुबंई निवास

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