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भारत की प्रथम महिला क्रांतिकारी की अनसुनी कहानी

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी। इनमें से कुछ नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं, तो कुछ गुमनामी के अंधेरे में खो गए।

ऐसी ही एक गुमनाम वीरांगना थीं प्रीतिलता वाडेडार, जिन्हें बंगाल की पहली महिला शहीद और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की प्रथम महिला क्रांतिकारी के रूप में जाना जाता है। मात्र 21 वर्ष की आयु में देश के लिए बलिदान देने वाली प्रीतिलता ने अपने साहस, बुद्धिमत्ता और देशभक्ति से अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया।

आज उनकी जन्मतिथि है, उनको शत-शत नमन।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

प्रीतिलता वाडेडार का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत (वर्तमान बांग्लादेश) के चटगाँव जिले के पाटिया के धालागाँव में एक साधारण बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता, जगबंधु वाडेडार, चटगाँव नगरपालिका में क्लर्क थे, और माता प्रतिभा देवी एक गृहिणी थीं। छह भाई-बहनों में दूसरे नंबर की प्रीतिलता को घर में प्यार से “रानी” कहा जाता था।

परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद, जगबंधु ने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। प्रीतिलता बचपन से ही मेधावी और निडर थीं। उनकी बुद्धिमत्ता का पहला परिचय तब मिला, जब उन्होंने चटगाँव के डॉ. खस्तागिर शासकीय कन्या विद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की।

1928 में प्रीतिलता ने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद 1929 में उन्होंने ढाका के इडेन कॉलेज में दाखिला लिया और इंटरमीडिएट परीक्षा में पूरे ढाका बोर्ड में पांचवां स्थान प्राप्त किया।

दो वर्ष बाद, उन्होंने कोलकाता के बेथुन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की। हालांकि, कोलकाता विश्वविद्यालय के ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी डिग्री रोक दी, जो उन्हें 80 वर्ष बाद, 22 मार्च 2012 को मरणोपरांत प्रदान की गई। प्रीतिलता की शैक्षिक उपलब्धियां उनके दृढ़ संकल्प और प्रतिभा का प्रमाण थीं।

क्रांतिकारी विचारों का उदय

प्रीतिलता का मन बचपन से ही स्वतंत्रता और न्याय के विचारों से भरा था। वे रानी लक्ष्मीबाई के जीवन से गहरे प्रभावित थीं और क्रांतिकारी साहित्य पढ़कर प्रेरित होती थीं। स्कूली जीवन में ही वे बालचर संस्था की सदस्य बनीं, जहां उन्हें सेवा और अनुशासन का पाठ पढ़ाया गया। लेकिन संस्था का यह नियम कि सदस्यों को ब्रिटिश सम्राट के प्रति निष्ठा की शपथ लेनी होगी, प्रीतिलता को स्वीकार नहीं था। यही वह क्षण था, जब उनके मन में क्रांति का बीज अंकुरित हुआ।

स्कूल में पढ़ते समय प्रीतिलता ने शिक्षा विभाग के एक अन्यायपूर्ण आदेश के खिलाफ अपनी सहपाठियों के साथ मिलकर विरोध किया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें और अन्य लड़कियों को स्कूल से निकाल दिया गया। यह घटना उनकी निर्भीकता और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की प्रवृत्ति को दर्शाती है।

कॉलेज के दिनों में वे दीपाली संघ नामक क्रांतिकारी समूह से जुड़ीं, जो महिलाओं को युद्ध प्रशिक्षण और राजनीतिक जागरूकता प्रदान करता था। यहीं से उनके क्रांतिकारी जीवन की नींव पड़ी।


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सूर्य सेन और क्रांति का रास्ता

प्रीतिलता का जीवन तब निर्णायक मोड़ पर आया, जब उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन, जिन्हें “मास्टर दा” के नाम से जाना जाता था, से हुई। सूर्य सेन भारतीय रिपब्लिकन आर्मी (आईआरए) के चटगाँव शाखा के नेता थे, जिन्होंने 1930 के चटगाँव शस्त्रागार छापे जैसे साहसिक अभियानों का नेतृत्व किया था।

प्रीतिलता, जो पहले क्रांतिकारियों को डरपोक समझती थीं, सूर्य सेन से मिलने के बाद उनकी गलतफहमी दूर हुई। वे सूर्य सेन के नेतृत्व और उनके देशभक्ति के जज्बे से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने आईआरए में शामिल होने का फैसला किया।

हालांकि, पुरुष-प्रधान क्रांतिकारी संगठन में महिलाओं को शामिल करना आसान नहीं था। उस समय यह धारणा प्रबल थी कि महिलाओं में कठिन परिस्थितियों में साहस और धैर्य की कमी होती है।

प्रीतिलता और उनकी सहयोगी कल्पना दत्त को अपनी योग्यता साबित करने के लिए कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा। प्रीतिलता ने निर्मल सेन से युद्ध प्रशिक्षण लिया और हथियार चलाने में निपुणता हासिल की। उनकी बुद्धिमत्ता और साहस ने जल्द ही सूर्य सेन का विश्वास जीत लिया।

क्रांतिकारी गतिविधियां और साहसिक कारनामे

 

प्रीतिलता ने क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्हें महिलाओं को संगठित करने, जेल में बंद क्रांतिकारियों से गुप्त रूप से जानकारी इकट्ठा करने, क्रांतिकारी पर्चे बांटने और बमों की पेटियां एकत्र करने जैसे जोखिम भरे कार्य सौंपे गए।

उनकी सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में से एक थी अलीपुर जेल में बंद क्रांतिकारी रामकृष्ण विश्वास से लगभग 40 बार मुलाकात करना, बिना किसी ब्रिटिश अधिकारी को संदेह हुए। यह उनकी बुद्धिमत्ता और साहस का प्रमाण था।

1932 में पूर्वी बंगाल के घलघाट में पुलिस ने क्रांतिकारियों को घेर लिया। इस मुठभेड़ में सूर्य सेन, प्रीतिलता और अन्य साथी शामिल थे। सूर्य सेन के आदेश पर क्रांतिकारियों ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी। इस दौरान अपूर्व सेन और निर्मल सेन शहीद हो गए, जबकि सूर्य सेन की गोली से ब्रिटिश कैप्टन कैमरन मारा गया।

प्रीतिलता और सूर्य सेन भागने में सफल रहे। इस घटना के बाद सूर्य सेन पर 10,000 रुपये का इनाम घोषित किया गया। दोनों एक महिला क्रांतिकारी सावित्री के घर गुप्त रूप से रहे, जो बाद में अंग्रेजों की क्रूरता का शिकार बनी।

पहाड़तली यूरोपियन क्लब पर हमला

प्रीतिलता का सबसे साहसिक और ऐतिहासिक कार्य था 23 सितंबर 1932 को पहाड़तली यूरोपियन क्लब पर हमला।

यह क्लब अपनी नस्लीय भेदभाव नीतियों के लिए कुख्यात था, जहां एक सूचना-पट्ट पर लिखा था, “कुत्तों और भारतीयों को प्रवेश की अनुमति नहीं।” इस अपमानजनक नीति के खिलाफ सूर्य सेन ने क्लब पर हमले की योजना बनाई, और प्रीतिलता को इस अभियान का नेतृत्व सौंपा गया।

23 सितंबर की रात को, प्रीतिलता ने पुरुष वेश में अपने 7-10 युवा साथियों के साथ क्लब पर धावा बोला। क्लब में उस समय करीब 50 अंग्रेज नाच-गाने और शराब में मस्त थे। प्रीतिलता के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने क्लब पर हमला किया और उसे आग के हवाले कर दिया। इस हमले में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई और 11 अन्य घायल हुए।

गोलीबारी के दौरान प्रीतिलता के पैर में गोली लग गई, जिसके कारण वे भाग नहीं सकीं। अपने साथियों को सुरक्षित निकालने के बाद, प्रीतिलता ने आत्मसमर्पण करने के बजाय पोटैशियम साइनाइड की गोली खाकर आत्मबलिदान दे दिया। उनके मृत शरीर के पास एक पर्चा मिला, जिसमें उनकी लिखावट में स्वतंत्रता के उद्देश्यों और महिलाओं की बराबरी की बातें लिखी थीं।

प्रीतिलता की कहानी आज भी प्रेरणा का स्रोत है। वे न केवल एक क्रांतिकारी थीं, बल्कि एक मेधावी छात्रा, निर्भीक लेखिका और समाज सुधारक भी थीं। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि सच्ची देशभक्ति और साहस किसी लिंग, उम्र या परिस्थिति से बंधे नहीं होते।

 

 


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Pratyush Prashant

किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।

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