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खाने के लिए भोजन चाहिए, जहर नहीं!

"कृत्रिम रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग से कैसे हमारी थाली बन रही है बीमारियों की जड़?"

आभार लोकमत समाचार

भोजन उत्पादन और प्रसंस्करण के क्षेत्र में कृत्रिम रासायनिक पदार्थों का प्रयोग लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके कारण भोजन की गुणवत्ता इस हद तक गिर चुकी है कि जो भोजन हमारी भूख मिटाता है, वह अब हमारे लिए पोषण से अधिक जहर का स्रोत बन गया है। रसायनों के अत्यधिक और अव्यवस्थित उपयोग के कारण हम अनजाने में कई गंभीर बीमारियों को न्योता दे रहे हैं।

खेती में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से उपज तो बढ़ जाती है, लेकिन कई अध्ययनों ने यह सिद्ध किया है कि इस प्रक्रिया से उत्पादित खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों का क्रमिक ह्रास होता है।

फसलों को कीड़ों, संक्रमणों और परजीवियों से बचाने के लिए कीटनाशकों और अन्य रासायनिक दवाओं का छिड़काव किया जाता है, जिससे तात्कालिक राहत तो मिलती है, पर इन रसायनों के अवशेष धीरे-धीरे भोजन में मिलकर शरीर को भीतर से नुकसान पहुंचाते हैं। यह हमारे भोजन के प्राकृतिक स्वरूप को भी प्रभावित करता है।


फल और सब्जियां भी अब सुरक्षित नहीं

प्रदूषण, अस्वास्थ्यकर खानपान, मद्यपान, धूम्रपान और कुछ विशिष्ट दवाओं के सेवन से मानव शरीर में विषैले तत्व जमा हो जाते हैं। ऐसे में अधिक मात्रा में फलों और सब्जियों का सेवन विषहरण में सहायक होता है।

कुछ किसान अधिक उपज और लाभ के लोभ में बिना मौसम के फलों-सब्जियों की खेती में जहरीले रसायनों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे इनका पोषण और औषधीय गुण समाप्त हो जाता है।

बाजार में आकर्षक दिखाने के लिए सब्जियों को चमकीले हरे रंग में रंगने के लिए मैलाकाइट ग्रीन का प्रयोग होता है, जबकि पीले रंग के लिए मार्टियस येलो का। ये दोनों ही रसायन कैंसरकारी होते हैं और पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं। त

रबूज, मटर, शिमला मिर्च, बैंगन और पपीता जैसे फलों व सब्जियों में सुई से कृत्रिम रंग इंजेक्ट किए जाते हैं ताकि ऊंची कीमत पर बेचे जा सकें। इसके अलावा, फॉर्मेलिन जैसे परिरक्षकों का भी उपयोग किया जाता है, जो उपभोक्ता के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकते हैं।


जबरन पकाए गए फल हानिकारक होते हैं

मीठे और सुगंधित आम सभी को पसंद होते हैं। आम को अधपका तोड़ने पर उसमें मौजूद प्राकृतिक हार्मोन उसे धीरे-धीरे पकाते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ दिन लगते हैं।

तेजी से पकाने के लिए उन पर कैल्शियम कार्बाइड का छिड़काव किया जाता है, जिसमें आर्सेनिक और फॉस्फोरस हाइड्राइड जैसे खतरनाक तत्व होते हैं। इनसे पके फल न केवल स्वादहीन होते हैं, बल्कि कैंसरकारी भी हो सकते हैं।

इससे उत्पन्न विषाक्तता के लक्षणों में उल्टी, दस्त, छाती व पेट में जलन, कमजोरी, निगलने में कठिनाई, आंखों में जलन, त्वचा पर अल्सर और सांस लेने में तकलीफ शामिल हैं। अत्यधिक मात्रा में कार्बाइड के प्रयोग से फेफड़ों में तरल भर सकता है। कई देशों में इसका उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित है। भारत में भी खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011 के तहत इसके उपयोग की अनुमति नहीं है, फिर भी आम, केला और पपीता जैसे फलों को पकाने में इसका व्यापक रूप से प्रयोग हो रहा है।


प्यासे होते जा रहे हैं महानगर



दूध और दुग्ध उत्पाद भी नहीं बचे सुरक्षित

भारत में भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दूध है। अधिक दूध प्राप्त करने की लालसा में कई डेयरी संचालक गाय-भैंसों को हार्मोनल इंजेक्शन देते हैं। इसके अलावा, दूध में पानी मिलाना, मक्खन निकालकर बेच देना और फिर उसमें एनाट्टो, सेरेमल, कोलटार जैसे रंग मिलाना आम हो गया है ताकि दूध गाढ़ा और शुद्ध दिखे।

दूध को टिकाऊ बनाने के लिए उसमें फॉर्मेल्डिहाइड और बोरिक एसिड जैसे संरक्षक मिलाए जाते हैं, जिससे वह कई दिनों तक खराब न हो। घी, पनीर और खोया के निर्माण में भी रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है, जो मानव शरीर में जमा होकर गंभीर बीमारियों का कारण बनते हैं।


कानून और जन-जागरूकता की ज़रूरत

भारत में शुद्ध खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 1954 में कानून लागू किया गया था। इसका उद्देश्य था कि सरकार जहरीले व घटिया खाद्य पदार्थों की बिक्री पर रोक लगाए और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करे।

आज यह देखने की आवश्यकता है कि यह कानून कितना प्रभावी है और खाद्य मिलावट करने वालों पर कितनी सख्ती से कार्रवाई होती है।अब समय आ गया है कि जनता स्वयं अपने भोजन के प्रति सजग हो।

साथ ही, सरकार, मीडिया और स्वयंसेवी संगठनों को मिलकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाना चाहिए, ताकि भोजन उत्पादन में रसायनों के खतरनाक प्रयोग पर नियंत्रण पाया जा सके। तभी हम अपने भोजन को जहर बनने से रोक पाएंगे और उसे फिर से स्वास्थ्यवर्धक बना सकेंगे


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आभार लोकमत समाचार

देवाशीष प्रसून

देवाशीष प्रसून महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में कंसल्टेंट के तौर पर अपनी भूमिका निभाई। 'अहा! ज़िंदगी' में असिसटेंट एडिटर रहे हैं। फिलहाल दरंभगा में रहते हैं और स्वतंत्र व्यवसाय कर रहे हैं

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