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मातृत्व की जंग: हर मां के लिए जरूरी है सुरक्षा और जागरूकता

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस पर जानिए क्यों ज़रूरी है हर महिला के लिए सम्मानित और सुरक्षित मातृत्व।

मातृत्व एक जंग है हर मां के लिए, जिसे हर मां जीत कर दिखाती भी है। अगर कोई महिला मां बनने जा रही है या फिर नयी-नयी मां बनी है, तो बड़े-बुजुर्गों के नसीहतों के साथ-साथ उसे उन सभी बातों के बारे में भी पता होना चाहिए, जिनसे एक मां को गर्भावस्था के दौरान तथा बच्चे के जन्म के बाद गुजरना पड़ता है। हर साल कम उम्र में मां बनने की वजह से लाखों लड़कियों की मौत हो जाती है।

इन्हीं सारी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए 11 अप्रैल को कस्तूरबा गांधी (बा) के जन्मदिन के अवसर पर राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है- सम्मानित एवं सुरक्षित मातृत्व को सुनिश्चित करना। व्याइट रिबन अलायंस इंडिया द्वारा शुरू की गयी इस पहल को हर साल गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की उचित देखभाल और प्रसव संबंधी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

कहते हैं कि मातॄत्व सुख एक स्त्री के जीवन का सबसे खूबसूरत अनुभव होता है, एक मां को जिस क्षण से अपने बच्चे के गर्भ में होने का अहसास होता है, उसी पर से उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। मां बनने के कुछ दिनों के बाद कई महिलाएं यह महसूस करती है कि जब वह गर्भवती थी, तब उन्हें मातृत्व का एहसास बेहद स्पेशल और अच्छा फील करवाता था।

गर्भधारण करने से प्रसव तक अपना और अपने बच्चे की देखभाल लेकर मां(खासकर पहली बार बनी मांओ को) हमेशा ही दुविधा बनी रहती है। दादी-नानी या घर के बुर्जुर्गों से बार-बार मिलनेवाली नसीहतें, बार-बार डाक्टर या हेल्थ काउंसलर के सुझावों के साथ रेस करने लगते है।

बच्चों को पहली बार फीड करवाने से लेकर उसकी मालिश करने, उसे पानी पितने, उसे सूसू-पाटी करवाने, यहां तक कि उसके लिए किस ब्रांड और किस तरह की चीजें खरीदी जाएं…इन सबको लेकर माएं बड़ा कंफ्यूज रहती हैं, क्योंकि जितने लोग, उतनी सलाह।

हर बात होती है एक-सी घबराहट

जब एक गर्भवती मां अपने बच्चे को जिंदगी देने के लिए अस्पताल के बिस्तरे पर लेटती है उस वक्त से उसके मन में घबराहटों का दौर शुरू होने लगता है,

अपनी कई महिला मित्रों के प्रसव अनुभवों को सुनने बाद पता चला कि पूरी तरह से नार्मल डिलीवरी को करवाने का मन बना लेने के बाद भी लेबर पेन शुरू होने पर सुनी-सुनायी बातें, हेल्थ काउंसलित के दौरान हुए उतार-चढ़ाव, लेबर रूम में आसपास मौजूद महिलाओं की पीड़ा, होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंता, उसके स्वस्थ्य डिलीवरी की चाहत और कई बार डाक्टर के साथ सही व संतोषजनक संवाद न हो पाने के कारण अक्सर गर्भवती महिलाओं का आत्मविश्वास डगमगा जाता है।

इसी कारण वे सर्जिकल डिलीवरी करवा लेती है। उस वक्त सारा अर्जित ज्ञान धरा का धरा रह जाता अहि। उसके मन में बस एह की ख्वाहिश्स होती है कि उसकी डिलेवरी अच्छे से हो जाये और कुछ नहीं।

परिवार और समाज के सपोर्ट की भी जरूरत

अपने देश में आज भी जिन इलाकों में गर्भवती महिलाएं अपने बच्चा जनने के लिए स्थानीय स्वास्थ्य सुविधाओं, जैसे कि प्रशिक्षित दाई अथवा आशा कर्मियों पर निर्भर है, वहां स्थिति अधिक चुनौतिपूर्ण है। इस स्थिति को धीरे-धीरे बेहतर करने की कई कोशिशे भी चल रही है, पर गर्भवती महिलाओं का घबराना सुरक्षित मातृत्व के लिए सुरक्षित वातावरण का निर्माण तो नहीं ही कहा जा सकता है।

एक गर्भवती महिला के आसपास मजबूत और समझदार परिवार के साथ बेहतरीन स्वास्थय सेवाओं का होना बेहद जरूरी है, जो गर्भवती महिला के मन में सुरक्षित वातावरण होने का विश्वास पैदा कर सके।

इन सारी स्थितियों को समझते हुए और पब्लिक फिगर होने के नाते अभिनेत्री करीना कपूर यूनिसेफ के साथ जुड़कर सुरक्षित मातृत्व के लिए समुचित माहौल के निमार्ण की दिशा में जन-जागरूकता फैलाने का काम कर रही है।

गुनाहगार है अशिक्षा

अपने देश में प्रतिवर्ष पांच साल से कम उम्र के 20 फीसदी बच्चों की मृत्यु केवल अशिक्षा के कारण हो जाती है। यह दुर्भाग्य ही तो है कि हमारे देश में खेलने-कूदने के उम्र में ही लड़कियां मां बन जाती है। इससे मां व उसके नवजात बच्चे, दोनों की जिंदगी खतरे में आ जाती है।

इसका मुख्य कारण है – अशिक्षा, हमें बाल-विवाह को रोकना होगा। अपने आसपास मौजूद लोगों को यह समझाना होगा कि एक महिला अपने बच्चे की सही देखभाल तभी कर सकती है। जब वह शिक्षित या अपने और नवजात बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जागरूक होगी, इसलिए शादी से पहले लड़कियों को शिक्षित किया जाना जरूरी है।

इन बातों का भी ध्यान दिया जाना जरूरी

बच्चे के जन्म के बाद नवजात को मां की त्वचा के साथ संपर्क कराना, जन्म के एक घंटे के अंदर ही उसे मां का स्तनपान कराना और इसके लिए मां की मदद करना, छह माह तक शिशु को सिर्फ मां का दूध देना। स्तनपान को दो साल तक या इससे भी अधिक समय के लिए जारी रखना, बच्चे को पर्याप्त और सुरक्षित तरल आहार देना, छह माह पूरे होने के बाद मुलायम भोजन देना, मिलावट की समस्या को ध्यान में रखते हुए नवजात बच्चों के लिए काजल और पाउडर के इस्तेमाल में सावधानी बरतना आदि बातों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है।

saumya jyotsna

मेरी कलम मेरे जज़्बात लिखती है, जो अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते, उनके अल्फाज़ लिखती है। Received UNFPA-Laadli Media and Advertising Award For Gender Senstivity -2020 Presently associated with THIP- The Healthy Indian Project.

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रामदेव रूह अफ़ज़ा Vs रूह अफ़ज़ा – एक दिलचस्प कहानी हर महिला को मिले सम्मानित और सुरक्षित मातृत्व। “सशक्तिकरण वहीं संभव है, जहां घरेलू श्रम को सम्मान मिले।” महिलाओं का विज्ञान में योगदान अद्वितीय है, लेकिन नोबेल पुरस्कारों में वह न के बराबर हैं। मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट: महिला अधिकारों और शिक्षा की पैरोकार