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“भारतीय महिला उद्यमिता: चुनौतियाँ, पूर्वाग्रह और बदलता सामाजिक परिदृश्य”

“जब महिलाएं स्टार्टअप की दुनिया में उतरती हैं: एक सामाजिक बदलाव की कहानी”

पहले वह बेटी होती है, फिर बहू और फिर मां। कमोबेश हर भारतीय समुदाय में महिलाओं की भूमिका सदियों से इसी रूप में परिभाषित रही है। पुरुषों और महिलाओं के बीच कार्य का विभाजन महज एक सामाजिक परंपरा रहा है, जिसे अब बदलने की आवश्यकता है।

हाल के दशकों में यह परिवर्तन की लहर समाज में बदलाव लाने में सहायक रही है। आज महिलाएं बिजनेस वुमन बन रही हैं। ‘सोशल मीडिया पर चाय बेचने वाली महिला’ जैसी कहानियों ने लोकप्रियता पाई है, जिनमें महिलाएं सिर्फ इसलिए सराही जाती हैं क्योंकि उन्होंने वह कार्य किया जिसे परंपरागत रूप से पुरुषों से जोड़ा गया था। ये व्यवसाय न केवल मुनाफा दे रहे हैं, बल्कि समाज की सोच को भी चुनौती दे रहे हैं।

समाज की सोच में बदलाव आया है। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक अध्ययन में बताया गया कि यदि ग्रामीण महिलाओं को घरेलू वित्त में अधिकार मिले, तो कामकाजी महिलाओं के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह में कमी लाई जा सकती है। जब महिलाओं को अपने पैसों पर अधिकार मिलेगा, तभी वे अपना आसमान और सम्मान प्राप्त कर सकेंगी।

सरकारों ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। लेकिन, सामाजिक संस्थाएं आज भी महिला उद्यमिता को वह मान्यता नहीं देतीं जिसकी वह हकदार हैं। घरेलू कार्यों को प्राथमिकता देने की अपेक्षा के कारण निवेशक (फंडर्स) महिलाओं को केवल गृहिणी के रूप में ही देखते हैं।

पिछले दो दशकों में महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी क्षमता सिद्ध की है। लेकिन भेदभाव के नए-नए स्वरूप भी सामने आए हैं, जिनसे निपटना आवश्यक है। आइए समझने की कोशिश करें कि स्टार्टअप की दुनिया में एक सामान्य महिला जब उद्यमिता की राह पकड़ती है, तो उसे किन पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है।


Colleagues at work

महिला उद्यमिता और सामाजिक ढांचा: दो विरोधाभासी ध्रुव

ग्लोबल डेवलपमेंट की दौड़ में महिलाओं को उद्यमी बनाने और गरीबी उन्मूलन जैसे लक्ष्यों के साथ “स्टार्टअप इंडिया” जैसे अभियानों ने नई दिशा दी है।

आज भी अधिकांश महिला उद्यमी ऐसे उत्पादों पर काम कर रही हैं जो पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को बनाए रखते हैं। महिलाएं एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था में उद्यमिता कर रही हैं, जो अब भी उनसे यही अपेक्षा करती है कि वे घरेलू काम करें, जातिगत-सामाजिक भूमिका निभाएं और परिवार की देखभाल करें।

इस आमूलचूल बदलाव के अभाव में महिला सशक्तिकरण अधूरा ही प्रतीत होता है।


1. फंडिंग और स्टार्टअप की पितृसत्तात्मक दुनिया

  • महिलाएं जब अपने स्टार्टअप आइडिया को पेश करती हैं, तो उन्हें फंडिंग पैनल से अपेक्षा से अधिक कठोर प्रतिक्रिया मिलती है।
  • यह सिर्फ उनके आइडिया की गुणवत्ता पर नहीं, बल्कि उनके ‘महिला’ होने पर भी निर्भर करता है।
  • स्टार्टअप की दुनिया आज भी पुरुष प्रधान है, जो टेक्नोलॉजी, नेटवर्किंग और गतिशीलता पर केंद्रित है।
  • यदि कोई महिला इस क्षेत्र में आगे भी बढ़ती है, तो भी वह उसी सामाजिक ढांचे में कार्य करती है जिससे वह संघर्ष करके आई होती है।
  • इस प्रक्रिया में महिला उद्यमिता को एक ‘मर्दाना’ आर्थिक दुनिया में फिट किया जाता है।

2. समाधान: प्रशिक्षण और परामर्श की भूमिका

  • महिला उद्यमियों के लिए समर्पित प्रशिक्षण और व्यावहारिक मार्गदर्शन आवश्यक है।
  • उन्हें उद्यम की बारीकियों में दक्ष बनाना जरूरी है ताकि वे नवउदारवादी अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकें।
  • इसके लिए जरूरी है कि महिलाओं को बदलते बाजार के अनुसार तैयार किया जाए।

3. घर के काम की मान्यता: गुप्त श्रमशक्ति से मुख्यधारा में लाना

  • जब तक घरेलू काम को श्रम के रूप में मान्यता और पारिश्रमिक नहीं मिलेगा, तब तक महिलाएं एक ‘गुप्त श्रमशक्ति’ ही बनी रहेंगी।
  • हमें फिर से मूल्यांकन करने की आवश्यकता है कि हम किस प्रकार कार्य के विभिन्न रूपों को महत्व देते हैं और गैर-बाजार गतिविधियों को किस प्रकार मान्यता देते हैं।

4. आंकड़े जो सोचने पर मजबूर करते हैं

  • 1990 में भारत में 37% महिलाएं कार्यबल का हिस्सा थीं, जो आज घटकर केवल 28% रह गई हैं।
  • यह गिरावट दर्शाती है कि अभी भी कई सामाजिक, पारिवारिक और सांस्कृतिक बाधाएं महिलाओं को उद्यमिता में आने से रोक रही हैं।
  • परिवार, समाज, संस्थाएं, और अंत में स्वयं महिला – सभी स्तरों पर चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

बिजनेस एक समुद्र की तरह है—जिसमें उतार-चढ़ाव अनिवार्य हैं। महिलाओं को इस सागर में सफलतापूर्वक तैरने के लिए सामाजिक समर्थन, समुचित प्रशिक्षण और आत्मविश्वास की आवश्यकता है।

वैश्विक समाज की पितृसत्तात्मक प्रकृति से जूझना आज महिलाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। और जहाँ तक भारत का सवाल है, एक महिला होना और सफल जीवनयापन के लिए काम करना एक तरह से दोहरी मार है। आज महिला उद्यमियों के सामने कई चुनौतियाँ हैं।

Pratyush Prashant

किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।

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