वैरिकोज वेंस को न करें नजरअंदाज

बदलती जीवनशैली के कारण आजकल कई बीमारियां लोगों को घेर रही हैं। भारत में हर साल वैरिकोज वेंस के 10 लाख केस देखने को मिलते हैं। लगभग 30 प्रतिशत बुजुर्ग हर साल इस बीमारी से जूझते हैं। वहीं करीब 7 प्रतिशत युवा इस स्थिति से परेशान हैं। इस रोग से महिलाओं को चार गुना अधिक खतरा रहता है। पैरों की नसें के सूजने के कारण शारीरिक व्यायाम न करना, एक ही जगह देर तक बैठे रहना, तंग कपड़े पहनना हैं। जानिए, इस रोग की गंभीरता व बचाव के बारे में…

शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए हर अंग का सुचारू कार्य करना जरूरी है, इनमें हृदय और उससे संबंधित वैस की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि इनके जरिये ही शरीर में रक्त का बहाव होता है।
सामान्यतः यह बहाव हृदय द्वारा पूरे शरीर में संचालित होता है, जिसमें वॉल्व की भूमिका यह होती है कि वह रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करता है, ताकि रक्त का बहाव सही दिशा में हो।
‘पैर में कई वॉल्व होते हैं, जो रक्त को हृदय की दिशा में प्रवाहित होने में मदद करते हैं. जब ये वॉल्व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो सूजन, दर्द, थकान, खुजली के लक्षणों के साथ रक्त के थक्के बनना शुरू हो जाते हैं। निचले अंगों से हृदय की ओर रक्त का प्रवाह कम होने से नसों में खून एकत्रित होता रहता है और पैरों में सूजन आ जाती है।
वैरिकोज वेंस में त्वचा के निचले हिस्से की नसें उभरकर बाहर आ जाती हैं। इसे स्पाइडर वेस भी कहते हैं, क्योंकि नर्स आपस में कुछ इस तरह से उलझ जाती हैं कि वे मकड़े की जाली की तरह दिखने लगती हैं। यह रोग आमतौर पर पैरों में होता है।
किन्हें है इस रोग का ज्यादा खतरा
यह बीमारी उन लोगों को ज्यादा होती है, जो ज्यादा देर तक खड़े रहते हैं या घंटों पैर लटकाकर एक ही तरीके से बैठे रहते हैं. अगर परिवार के किसी सदस्य को यह रोग है, तो आनेवाली पीढ़ियों में भी इसके शुरुआती लक्षण दिख सकते हैं। अगर आपका वजन ज्याद है और आप मोटापे के शिकार हैं, तो इस बीमारी के होने की संभावना बढ़ जाती है।
कुछ गर्भवतियों को भी यह बीमारी हो सकती है। चूंकि गर्भावस्था के दौरान शरीर में बढ़ते भ्रूण के लिए रक्त का उत्पादन ज्यादा होता है और बढ़ते रक्त और हार्मोनल बदलाव के कारण शरीर का वजन बढ़ जाता है। इससे शरीर का पूरा दबाब पैरों पर आ जाता है और नसें सूज जाती हैं और वे उभार के साथ गहरे बैंगनी या नीले रंग की दिखने लगती हैं।
गर्भावस्था, पीरियड्स कुछ कारक हैं, जो महिलाओं में वैरिकोज नसों को प्रभावित करते हैं, इसके अलावा बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी के होने का खतरा भी बढ़ जाता है, क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ नसें और वॉल्व अपना लचीलापन खो देती हैं। इस वजह से उनमें खिंचाव बढ़ जाता है और रक्त विपरीत दिशा में बहने लगता है।
एक अहम सवाल इसमें एक बात जो ध्यान देने योग्य है, वह यह है कि जब नसें पूरे शरीर में हैं, तो फिर नसों में ऐसे उभार पैरों या पंजों के आस-पास ही क्यों देखने को मिलते हैं?
इसका कारण जो सामने आता है, वह यह है कि गुरुत्वाकर्षण बल रक्त के बहाव को नीचे की ओर खींचता है, मगर वॉल्व के खराब हो जाने के कारण यह रक्त के बहाव को ऊपर अर्थात् विपरीत दिशा में खींचने लगता है, जिस वजह से नसों में भारी खिंचाव उत्पन्न होता है और वह सृजने लगती हैं। इस कारण उनमें खुजली, दर्द, ऐंठन, भारीपन और जलन महसूस होती है और यही नसे वैरिकोज वेस का रूप ले लेती हैं।
हालांकि कभी-कभी इस बीमारी को कॉस्मेटिक समस्या भी माना जाता है, लेकिन अगर इसका तुरंत इलाज नहीं कराया जाये, तो यह बीमारी गंभीर रूप धारण कर लेती है। इसमें रक्त हृदय तक सही से नहीं पहुंच पाता और वह बेंस में ही जमने लगता है. वहीं अगर इसमें किसी प्रकार की चोट लग जाती है, तो अंदर ही अंदर खून का बहाव होने लगता है, जो अल्सर का कारण भी बन जाता है।
वीनोग्राम भी किया जाता है, जिसमें डॉक्टर इन्जेक्शन से पैरो में विशेष रंग डाल कर उस क्षेत्र का एक्स-रे लेते हैं. इससे रक्त के प्रवाह का पता चलता है। इन दो टेस्ट के आधार पर डॉक्टर सुनिश्चित करते हैं कि पैरों में सूजन का असल कारण क्या है, क्योंकि कभी-कभी रक्त में थक्का जमने या रुकावट होने से भी सूजन आ जाती है।
कुछ अन्य जांच है- डॉप्लर स्टडी, मल्टी सीटी स्कैन, एमआर वीनोग्राम व डिजिटल सन्ट्रेक्शन दीनोग्राफी।
कुछ प्रमुख सर्जरी
- वेनस बाइपास और आइवीसी बाइपास सर्जरी द्वारा शिराओं की रुकावट वाली जगह को बाइपास कर देते हैं, ताकि अशुद्ध रक्त का फ्लो बना रहे. • अगर शिराओं के वॉल्व नष्ट हो चुके हैं, तो वाल्लोप्लास्टी व एक्जीलरी देन ट्रांसफर जैसी सर्जरी की जाती है.
अगर वैरिकोस वेन ज्यादा बड़ी हो गयी है और शिराओं में अवरोध नहीं है, तो ‘फ्लेबेक्टमी’ नामक ऑपरेशन करते हैं. - इनके अलावा आजकल लेजर और आरएफए नामक आधुनिकतम तकनीक का भी प्रयोग किया जा रहा है. आरएफए में कोई सर्जरी नहीं होती. 24 घंटे में अस्पताल से छुट्टी मिल जाती।
उपचार के कुछ अन्य तरीके
हालांकि आज भी सर्जरी की जटिलताओं के कारण लोग जीवनशैली में बदलाव लाकर और होम्योपैथिक दवाओं द्वारा इलाज करवाना बेहतर मानते हैं। फिर भी लाभ न होने पर सर्जरी व प्रमुख थेरेपीज मौजूद है स्कलेरियोथेरेपी: इसमें बड़ी नसों के ब्लॉकेज को खोलने के लिए इन्जेक्शन द्वारा रसायन का प्रयोग होता है, ताकि इस बीमारी के दर्द से राहत मिल सके. माइक्रोस्कलेरियोथेरेपी (Microvelerotherapy) नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें इन्जेक्शन द्वारा छोटी नसों के मार्ग को सुधारा जाता है।
लेजर सर्जरी: इसके जरिये हल्की ऊर्जा द्वारा नसों की गुत्थी का ट्रीटमेंट किया जाता है.
एंडोवीनस एब्लेशन थेरेपी रेडियो तरंगों के माध्यम से नसों में रक्त के प्रवाह को ठीक किया जाता है। ये कुछ इलाज के तरीके हैं, जिनके द्वारा हम इस बीमारी और इससे होनेवाली जटिलताओं से बच सकते हैं, लेकिन अगर हम स्वयं ही अपनी सेहत के प्रति जागरूक रहे और नियम अनुसार अपने डाइट और एक्सरसाइज को फॉलो करें, वाकई कई तरह की बीमारियों से स्वयं को बचा सकते हैं।
कुछ प्रभावी होम्योपैथिक दवाएं

कुछ होम्योपैथिक दवाओं को इस रोग में चमत्कार माना जाता है, क्योंकि ये न केवल दर्द से राहत देती है, बल्कि नसों को अधिक लचीला बनाती है। रक्त के बहाव को ठीक करने, सूजन कम करने में भी कारगर है। इन्हें लक्षणों के आधार पर दिया जाता है-
हेमामेलिस: यह प्रभावी रूप से नसों में खुन बहने से रोकता है। यह दर्द से और पैरों की भारीपन की उत्तेजना से भी राहत प्रदान करता हैं।
प्लसाटिला: इसकी सलाह उन महिलाओं को दी जाती है, जिसमें गर्भावस्था के दौरान वेरिकोज नसें विकसित होती हैं। यह दर्द को शीघ्र ही ठीक करता है। विशेष रूप से पैरों और हाथों के सूजन में कारगार है।
कैल्केरिया कार्बोनेका: आमतौर पर उन रोगियों को अनुशंसा की जाती है, जो इस रोग से ग्रसित हैं, मगर उन्हें दर्द नहीं होता। यदि रोगी को ठंड लगती है और उसकी नसों में हाथ-पैरों में ठंड या जलन जैसी सनसनी होती है, तो कैल्केरा अच्छा इलाज है।
ग्रेफाइट्स: यह वेरिकोज नसों के लिए एक बेहतरीन इलाज हैं, जो खुजली और क्रैम्पिंग की समस्या में कारगर है।
आर्निका: इस दवा से प्रभावी रूप से वेरिकोज नसों से संबंधित दर्द और चोट लगने के लक्षण का उपचार किया जाता है।
आयुर्वेद में उपाय
वैरिकोज वेंस की समस्या में आयुर्वेद कहता है कि ऑलिव ऑयल से मालिश करने से ब्लड सर्कुलेशन काफी बेहतर होता है। इससे दर्द और सूजन में भी आराम मिलता है। इसके लिए ऑलिव ऑयल और विटामिन ई ऑयल की बराबर मात्रा लेकर उसे गर्म कर लें। उसी तेल से दस मिनट तक पैर की मालिश करें। यह प्रक्रिया कम से कम एक डेढ़ महीने तक अपनाएं।
इनपुट सौम्या ज्योत्स्ना

लेखक वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक रह चुके है। संप्रति होम्योपैथी चिकित्सा-पद्धति के जरिए लोगों की सेवा। नई दिल्ली और मुबंई निवास