
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बॉलीवुड के फिल्मकारों, कलाकारों और सितारों से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर उनके विचारों को सिनेमा के माध्यम से फैलाने की बात कही।
महात्मा गांधी स्वयं सिनेमा से प्रभावित नहीं थे। उन्होंने फिल्मों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखा और अपने जीवन में केवल दो-एक फिल्में ही देखीं। फिर भी, गांधी के विचारों ने अन्य कलात्मक माध्यमों की तरह भारतीय सिनेमा, विशेषकर बॉलीवुड, पर गहरा प्रभाव डाला।
गांधी का जीवन खुद कई चर्चित फिल्मों—जैसे गांधी, द मेकिंग ऑफ महात्मा, और लगे रहो मुन्ना भाई—का प्रेरणास्रोत रहा है।
दिलीप कुमार थे ‘नेहरू का हीरो’
लेकिन गांधी के विपरीत, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सिनेमा में गहरी रुचि थी। वे सिनेमा को जनजीवन पर प्रभाव डालने वाला एक सशक्त माध्यम मानते थे। यह कोई संयोग नहीं है कि बॉलीवुड के विकास में नेहरू की नीतियों की अहम भूमिका रही है, हालाँकि आज इस पर कम ही चर्चा होती है।
वर्तमान राजनीतिक माहौल ऐसा बन गया है कि नेहरू से जुड़ी कोई भी बात अक्सर तथ्य से हटकर राजनीतिक रंग ले लेती है।
बॉलीवुड की कई फिल्मों में नेहरू के ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ की झलक मिलती है। इन फिल्मों में एक प्रकार का रोमांटिक आदर्शवाद दिखाई देता है। प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक मेघनाद देसाई ने अभिनेता दिलीप कुमार को ‘नेहरू का हीरो’ कहा है।
आइडिया ऑफ इंडिया’ पर नेहरू के विचार की छाप दिखती है
भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1949 में नेहरू ने सिनेमा उद्योग की स्थिति की समीक्षा हेतु ‘फिल्म इन्क्वायरी कमेटी’ का गठन किया। इस समिति ने भारतीय सिनेमा के विकास के लिए अनेक सुझाव दिए। इन्हीं सुझावों के आधार पर 1960 में ‘फिल्म फाइनेंस कॉरपोरेशन’ की स्थापना हुई, जिसे आगे चलकर ‘नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन’ के रूप में जाना गया। उसी वर्ष, सोवियत संघ के मॉस्को स्थित सरगई गेरासिमोव फिल्म संस्थान की तर्ज पर पुणे में ‘फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII)’ की स्थापना हुई।
कुछ वर्षों बाद, 1964 में, सांस्कृतिक विरासत के रूप में सिनेमा के संरक्षण हेतु इसी संस्थान के अंतर्गत ‘राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय’ की स्थापना की गई। यह देश का एकमात्र ऐसा संस्थान है जो फिल्मों के संग्रह, संरक्षण और प्रसार के क्षेत्र में कार्यरत है।
1950 के दशक की फिल्मों पर नेहरू के विचारों की गहरी छाप दिखाई देती है। इन फिल्मों में उनके ‘आइडिया ऑफ इंडिया’ की स्पष्ट झलक मिलती है। दिलीप कुमार को ‘नेहरू का हीरो’ कहा गया है और इन फिल्मों में आदर्शवाद का एक भावुक स्वरूप दिखाई देता है।
नेहरू इस सॉफ्ट पावर के महत्व को भली-भांति समझते थे। वे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडलों में बॉलीवुड के कलाकारों को शामिल करते थे। वर्ष 1955 में प्रदर्शित राज कपूर की फिल्म श्री 420 का प्रसिद्ध गीत—
“मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी,
सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी”
नेहरू के दौर की भावना को दर्शाता है। फरवरी 1955 में अकादमी के पहले फिल्म सेमिनार के उद्घाटन पर नेहरू जी ने जो सपना देखा था, उस पर तब विश्वास करना कुछ मुश्किल सा था। लेकिन आज उनका वह कथन, वह सपना पूरी तरह साकार हो गया है। तब नेहरूजी ने कहा था-
“मैं भारतीय फिल्मों का महान और भव्य भविष्य देखता हूँ। भारतीय फिल्में दुनिया भर में भीड़ से भरे सिनेमा घरों में दिखाई जाएंगी। हमारी ये फिल्में हमारे देश के लिए सिर्फ पैसा ही नहीं कमाएंगी, बल्कि सुंदरता, अच्छाई और सच के लिए मान सम्मान भी कमाएंगी। भारत विश्व में एक अलग और महत्वपूर्ण योगदान देगा…और मुझे पूरा विश्वास है कि यह जरूर होगा।”
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अरविंद दास
‘बेख़ुदी में खोया शहर: एक पत्रकार के नोट्स’ और ‘हिंदी में समाचार’ (शोध) के लेखक । ‘रिलिजन, पॉलिटिक्स एंड मीडिया: जर्मन एंड इंडियन पर्सपेक्टिव्स’ किताब के संयुक्त संपादक ।
डीयू से अर्थशास्त्र की पढ़ाई, आईआईएमसी से पत्रकारिता में प्रशिक्षण और जेएनयू से हिंदी साहित्य में एमफिल, पत्रकारिता में पीएचडी। एफटीआईआई, पुणे से फिल्म एप्रिसिएशन कोर्स और एनसीपीयूएल से उर्दू में डिप्लोमा ।
एमफिल-पीएचडी के दौरान जेएनयू में यूजीसी के रिसर्च फेलो और जर्मनी के जिगन विश्वविद्यालय में डीएफजी के पोस्ट-डॉक्टरल फेलो रहे। देश-विदेश में मीडिया को लेकर हुए सेमिनारों में शोध पत्रों की प्रस्तुति । भारतीय मीडिया के विभिन्न आयामों को लेकर जर्मनी के विश्वविद्यालयों में व्याख्यान ।
बीबीसी के दिल्ली स्थित ब्यूरो में सलाहकार और स्टार न्यूज में मल्टीमीडिया कंटेंट एडिटर रहे। फिलहाल करेंट अफेयर्स कार्यक्रम बनाने वाली प्रतिष्ठित प्रोडक्शन कंपनी आईटीवी (करण थापर), नयी दिल्ली के साथ प्रोड्यूसर के रूप में जुड़े हैं। सिनेमा और संस्कृति पर ‘प्रभात खबर’ में कॉलम । विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, ऑनलाइन वेबसाइट के लिए नियमित लेखन ।