
महर्षि वाल्मीकि ने जिन सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों के आधार पर जिस महाकाव्य को रचा और जिस महापुरुष को नायक बनाया, वह भगवान राम प्यार, दया और सकारात्मकता की प्रतिमूर्ति हैं। रामायण एकमात्र ग्रंथ है, जो तीन सौ से लेकर एक हजार तक की संख्या में विविध रूपों में मिलती हैं।
रामायण का कई देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। बावजूद इसके रामायण को चाहे किसी भी भाषा या रूप में पढ़ें, हमें इसमें प्रभु श्रीराम का चरित्र श्रेष्ठ मानवीय गुणों से परिपूर्ण मिलता है। ये वही मानवीय गुण हैं, जिनका अगर हम अंश मात्र भी अपने व्यक्तित्व में साकार कर लें, तो हमारा जीवन खुशहाल और संतुष्ट जीवन की हमारी कामना पूर्ण हो सकती है।
भारतीय समाज में शायद ही कोई व्यक्ति हो, जिसके कान में रामायण शब्द की ध्वनि नहीं गूंजी हो, हम किसी भी धार्मिक आस्था में विश्वास करते हो, रामायण के प्रति हमारे मन में एक श्रद्धा होती ही है। भले ही उन श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को जीवन में उतार नहीं पाते हैं, पर आस्था का भाव तो रखते ही हैं।
महावीर, बुद्ध, विवेकानंद, गांधी इस बात का स्पष्ट उदाहरण हैं। इन सबों ने अपने जीवन यात्रा में रघुनंदन राम के गुणों को आत्मसात किया और मानव मात्र की सेवा में लगे रहे। रामायण के समक्ष कोई महाकाव्य नहीं है, जिसके हर प्रसंग में कुछ-न-कुछ सीख हो।
समान्य मानव के रूप में भगवान राम की पूरी जीवनयात्रा का हर पड़ाव सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का पाठ है। रघुनंदन राम में मौजूद इन गुणों की कामना हर नागरिक में करते हैं।
भये प्रकट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भत रूप विचारी॥
भावर्थ: दीनों पर दया करनेवाले, कौशल्या जी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए, मुनियों के मनों को हरनेवाले उनके अद्भत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गयी।
विविध रामायणों में किसी भी रामायण को पढ़ें, तो पता चलता है कि मानव रूप में रघुनंदन राम मानवीय गुणों को अपने आसपास मौजूद हर महिला और सजीव प्राणी मात्र में अर्जित करते हैं और भौतिक जगत में अपने मानवीय सामाजिक व्यवहार से लोगों में लुटा देते हैं। आइए इस रामनवमी के शुभ अवसर पर रघुनंदन राम के उन श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को जानते-समझते हैं।
जीवन संगतों से होता है प्रभावित

यह वह पाठ है, जिसके बारे में हम बचपन से सुनते आ रहे हैं, परंतु दैनिक जीवन संघर्ष में कई बार हमारी असफलता इस सच को स्वीकार नहीं कर पाती है कि हम कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, अगर हमारी नीयत सही नहीं हो, तो सफलता हमेशा हमारे जीवन से कोसों दूर रहेगी या फिर वह क्षणभंगुर ही होगी। बुराई कभी न कभी पराजित होती ही है और अंतत: अच्छाई ही जीतती है।
दो सड़े हुई आम के बीच एक अच्छा आम रख दिया जाये, तो अच्छा आम भी जल्द ही सड़ जाता है। माता कैकेयी अपने बेटे भरत से अधिक राम को प्यार करती थी, पर अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर उन्होंनेअपने श्रीराम को 14 वर्षों के लंबे वनवास का आदेश दे दिया।
यह मंथरा की नकारात्मक संगत का असर ही थाम जो राम के प्रेम से आगे निकल गया और पुत्र प्रेम के मोह में जकड़ गया। यह सिर्फ संगत का असर ही है, जिसने माता कैकेयी के बुद्धि को मंद कर दिया। इसी वजह से बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों को संगत का बहुत अधिक ख्याल रखते हैं।
एक मां ने वनवास जाने का आदेश दिया और दूसरी मां का पुत्र बड़े भाई के साथ निकल पड़ा। जिस मां ने वनवास भेजा, उसके पुत्र के भाई के लिए गद्दी ठुकरा दी। फिर भाई के आग्रह पर राजकाज संभाला और उसके लौटने पर राज्य वापस कर दिया।
देवी सीता की वहनों ने भी स्वार्थ से ऊपर उठकर रिश्तों को प्राथमिकता दी। ये तमाम प्रसंग सिखाते हैं कि पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते हमेशा सांसारिक सुखों से ऊपर और अधिक महत्वपूर्ण हैं।
रिश्ते की पूंजी से बढ़कर कोई धन नहीं
रामायण की कहानी भारतीय समाज की तरह विविधता में एकता की सीख देती हैं। रामायण विविधता में एकता के साथ-साथ पूरे परिवार को एक साथ चलने की आवश्यकता पर बल देता है। यह सिखाता है कि हम सभी को अपने घर-परिवार तथा कुटुंब को हमेशा साथ लेकर चलना चाहिए।
बुराई पर भलाई की जय का एक एतिहासिक और दूरगामी अर्थ भी है, जिसपर एक जाग्रत समाज को हमेशा एक जिम्मेदारी दृष्टि रखनी चाहिए।
अगर रावण सीता का हरण नहीं करता, तब न ही उसके साथ युद्ध होता, न ही रावण का अंत होता। भावावेश में आकर लक्ष्मण ने भी शूर्पनखा का अपमान किया था जो कि कहीं से न्यायसंगत नहीं था लेकिन एक गलती को दूसरी गलती से सही साबित नहीं किया जा सकता है। रावण ने क्रोध, विश्वासघात और प्रतिशोध में न केवल अपना, बल्कि अपने समूचे कुंटुंब का भी विनाश कर लिया। इसी कारण माफ करने को अधिक महान बताया गया है और इसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय गुण कहा गया है।

रघुनंदन राम किसी के साथ भी कोई भेदभाव नहीं करते हैं। फिर चाहे वह निषाद हो या शबरी, वानरराज सुग्रीव हो या संमुद्र में कंकड़ फेंकनेवाली नन्हीं गिलहरी। वह मनुष्यों के साथ ही नहीं, पशु-पक्षियों से भी बेहद स्नेह करते हैं।
रामायण का मूल संदेश यही है कि सच्चा इंसान वही है, जो प्राण-जगत में हर सजीव चीज को एक समान देखे, फिर चाहे वह मनुष्य हो, जानवर हो या फिर प्रकृति। हमें सबके साथ एक समान व्यवहार करना चाहिए। समाज हमेशा शांतचित, विवेववान और मृदृभाषी सत्यनिष्ठ नायक का चुनाव करता है, जबकि उसका ताकतवर होना जरूरी नहीं होता है।
सफलता के लिए धैर्य, विश्वास और दृढ़संकल्प जरूरी
रामायण में शबरी प्रसंग यह सिखाता है कि जीवन में सफलता पाने के लिए दृढसंकल्प, धैर्य और उत्साह का होना बहुत जरूरी है। युगों पहले गुरु ने शबरी को राम की प्रतीक्षा करने के लिए कहा था। शबरी हर रोज पूरे उत्साह के साथ प्रभु राम के इतंजार में आश्रम को साफ करती, उनके लिए ताजे फूल-फल तोड़ती। फल कड़वे न हो, इसलिए थोड़ा चख भी लेती। अपने गुरु के शब्दों में पूर्ण विश्वास करते हुए वह धैर्य, उत्साह और दृढ़संकल्प के साथ प्रतीक्षा करती रही। अतंत: प्रभु श्रीराम ने उन्हें दर्शन दिये भी।
अंत में यह कहना तर्कसंगत होगा कि रघुनंदन राम एक आम मानव अवतार के रूप में हमें मानवीय सभ्यता के उन मानवीय मूल्यों का पाठ सिखाते हैं, जिनसे हमारा सामाजिक जीवन खुशहाल और संतुष्ट बन सके। हमें कण-कण में राम और जन-जन में राम की अवधारणा को साकार करने के लिए हर मन में राम को बसाना होगा।