BiographyFeatureडॉ. भीमराव अंबेडकर

भारतीय महिलाओं को अधिकार दिलाने वाले पहले क्रांतिकारी: डॉ. भीमराव अंबेडकर

भारतीय महिलाओं को मौजूदा दौर में अधिकांश अधिकारों को दिलाने की पहली नींव बाबा भीमराव अंबेडकर ने ही रखी थी।

भारतीय राजनीति में कुछ ही विरले महानायक है जिनके बारे में सबसे अधिक पढ़ा जाता है और जिनमें बहुत अधिक करंट है। उनके अपने दौर में उनके विरोधी उनके विचारों के नज़दीक जाने भर से डरते थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने समय के विपरीत धार में अपनी नाव को उस पार लगाने की कोशिश बाबा साहब भीमराम अंबेडकर कर रहे थे।

इसलिए आज Dr. Bhimrao Ambedkar के विचारों का प्रभाव ही है कि उनके जाने के इतने सालों बाद भी, मात्र उनके विचारों और संघर्ष से ही वह महौल बन जाता है कि दलित और पिछड़े समाज में नई पौध तैयार हो जाती है।

उनके विचारों में छिपी ऊर्जा ही है जो न केवल राजनीति, प्रशासन, साहित्य, पत्रकारिता, सामाजिक क्षेत्र बल्कि हर जगह मौजूद है। इसको बाबा साहब की प्रासंगिकता, उनके विचारों का असीम, अनवरत प्रभाव नहीं कहा जाए तो और क्या कहा जाए, जो आलोकित पर्थ-प्रदर्शित है, उन सभी के लिए जिनका भारत के संविधान में सबसे अधिक विश्वास है।

महिला समस्याओं से जुड़े बाबा भीमराव अंबेडकर

औपनिवेशिक दौर में भारतीय समाज-सुधारक ने महिलाओं के सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए या महिलाओं को सामाजिक कुरितियों से मुक्त कराने के लिए महिलाओं के शिक्षा को एक बेहद महत्त्वपूर्ण उपाय माना था।

समाज द्वारा भद्रलोक कही जाने वाली शिक्षित हो रही महिलाएं, अपने सवालों को स्वयं पुर्नपरिभाषित कर रही थी, जिससे वह भारतीय महिलाओं की स्थिति को बेहतर करने की चाह रखती थीं। इन कोशिशों या प्रयासों का कोई लाभ वंचित या दमित समुदाय के महिलाओं को नहीं था।

बाबा साहब अंबेडकर भारत में जाति और महिला समस्याओं को संपूर्णता में देखने चाहते थे इसलिए वे इससे जुड़ी उन तहों को उधेड़ रहे थे, जिसको उन्होंने कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में अपने एक पेपर में प्रस्तुत किया।

एक समाजशास्त्री के तौर पर बाबा साहब भारतीय महिलाओं के दोयम स्थिति के कारणों की पड़ताल और व्याख्या प्रस्तुत करने वाले प्रमुख व्यक्ति कहे जाने चाहिए। परंतु, शायद ही बाबा साहब को इसके लिए याद किया जाता है।

बाबा साहब ने अपनी किताब में किया समाज की सच्चाई को ज़ाहिर

“भारत में जातियां-संरचना, उत्पत्ति और विकास” किताब में पहली बार बाबा साहब इस सच्चाई को जाहिर किया कि जाति की मुख्य विशेषता अपनी जाति के अंदर शादी करना है। कोई अपनी इच्छा से शादी नहीं कर सके, इसलिए प्रेम करने पर भारतीय समाज में इतनी अधिक पाबंदियाँ है।

इस किताब में आगे उन्होंने इस बात का जिक्र भी किया है कि

“भारत में अनुलोम संबंध बनते रहे हैं, मतलब ऊपरी जातियां नीची जाति की औरत से संबंध बनाता रहा है, ऐसी मान्यता है। जबकि प्रतिलोम संबंध मतलब ऊपरी जाति की महिला नीची जाति के पुरुषों से संबंध नहीं बना सकती। जिसके कारण प्रमुख महिला समस्याएं, मसलन, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर रोक और प्रेम-संबंध पर रोक लगाई गई है।”

सिर्फ़ महिलाओं को शिक्षत करना ही समस्याओं का समाधान नहीं

जाहिर है बाबा साहब भीमराव अंबेडकर भारतीय महिलाओं की समस्या को जड़-मूल से समझने का प्रयास करते हैं। इसलिए वे महिलाओं की समस्याओं का एकमात्र समाधान उनको केवल शिक्षित कर देने में नहीं देखते हैं, न ही महिलाओं के सवालों को पुन:परिभाषित करने का प्रयास करते हैं।

बाबा साहेब महिलाओं के समस्याओं के मूल कारणों पर चोट करना चाहते हैं, इसलिए वह कहते हैं कि “किसी भी समुदाय की प्रगति महिलाओं के प्रगति से ही आंकी जा सकती है।”

महिलाओं के सामाजिक स्थिति से किसी भी समुदाय के विकास को मानने के कारण ही 5 फरवरी 1951 को वह ‘हिंदू कोड बिल’ पेश करते हैं। इस कथन के साथ कि “महिलाओं के लिए सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा, जब महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी हो सकती है जब उन्हें परिवार-समाज में बराबरी का दर्जा मिले। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उनकी इस काम में मदद करेगी।”

जाहिर है कि महिलाओं के विकास का ब्लू-प्रिंट उनके पास तैयार था। जिसको आसानी से स्वीकार कर पाना औपनिवेशिक और सामंती समाज से तुरंत बाहर निकालना समाज के लिए मुश्किल था। समाज स्वयं तो गुलामी की दासता से बाहर आ चुका था पर महिलाओं को न ही आर्थिक आत्मनिर्भरता देना चाहता था, न ही तलाक लेने का अधिकार, न ही गोद लेने का अधिकार।

हिंदू कोड बिल द्वारा बाबा साहेब ने की बदलाव की शुरुआत

Dr Ambedkar discussing the Hindu Code Bill in New Delhi. Year Unknown | Source: Ministry of External Affairs

हिंदू कोड बिल उस दौर में पास नहीं हो सका, बाबा साहेब ने मंत्रीमडल से अपना इस्तिफा दे दिया। बाद में हिंदू कोड बिल के अधिकांश प्रावधानों को मंजूरी मिली जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू तलाक अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू दत्तकगृहण अधिनियम प्रमुख है।

कहा जाना चाहिए कि भारतीय महिलाओं को मौजूदा दौर में अधिकांश अधिकारों को दिलाने की पहली नींव बाबा साहेब ने ही रखी थी। जिसके आलोक में कई और अधिकार महिलाओं को समय के साथ मिलते चले गए।

भारतीय संविधान से महिलाओं को मिले तमाम अधिकार के बाद भी मौजूदा समय में ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत में अभी जेंडर गैप 62.5% है। 156 देशों में भारत 28वें स्थान से फिसलकर 140वें स्थान पर आ गया है।

हम न ही राजनीति में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व दे सके है न ही तकनीकी क्षेत्र में। श्रम के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी कम हुई है और भारत में 17.6% पुरुषों की तुलना में एक तिहाई महिलाएं निरक्षर है और महिलाओं के आय में अमानता संगठित/असंगठित हर क्षेत्र में है।

ये आकंड़े बता देते हैं कि भारत की आधी-आबादी को बाबा साहेब की प्रासंगिकता, उनके विचारों का असीम, अनवरत चलने वाले प्रभाव की जरूरत सबसे अधिक है, जिससे आधी-आबादी अपने तमाम सवालों को समग्रता में समेट सके और स्त्री-पुरुष समानता के दिशा में आगे बढ़ सके।

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