राजस्थान की ‘जल सखी’ महिलाएं बदलाव की अग्रदूत
जब ग्रामीण महिलाएं बनीं जल प्रबंधन की अगुआ — पानी, पंचायत और परिवर्तन की कहानी

पानी की कमी से जूझते राजस्थान जैसे सूखा-प्रवण राज्य में जल संरक्षण सदियों से एक चुनौती रहा है। जल स्रोतों का सूखना, मानसून की अनियमितता और भूमिगत जल का दोहन ग्रामीण जीवन और कृषि दोनों पर भारी पड़ा है। ऐसे में जब जल संकट से निपटने की योजनाएं बनाई जाती हैं, तो अक्सर सरकारें तकनीकी हलों पर जोर देती हैं, लेकिन राजस्थान में एक नई परंपरा जन्म ले रही है— ‘
जल सखी महिलाएं’। ये वे ग्रामीण महिलाएं हैं जो अब जल प्रबंधन, संरक्षण और सामुदायिक नेतृत्व में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
‘जल सखी’ कौन हैं?
‘जल सखी’ कार्यक्रम राज्य सरकार और विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को जल संरक्षण के क्षेत्र में प्रशिक्षित करना और उन्हें गांवों में जल प्रबंधन के कार्यों की जिम्मेदारी देना है। ये महिलाएं न केवल जल स्रोतों की निगरानी करती हैं, बल्कि वर्षा जल संचयन, पाइपलाइन मरम्मत, जल परीक्षण और समुदाय में जल उपयोग की आदतों में बदलाव लाने जैसे कामों की ज़िम्मेदारी भी उठाती हैं।
‘जल सखी’ आंदोलन ने यह साबित कर दिया है कि महिलाएं सिर्फ घरेलू उपयोग के लिए जल का उपभोग करने वाली नहीं हैं, बल्कि वे जल के रख-रखाव और वितरण में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। कई जिलों में ये महिलाएं गांव की जल समितियों की मुखिया बनी हैं, जल पंचायतों का संचालन कर रही हैं और तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त कर जल आपूर्ति की निगरानी कर रही हैं।
राजसमंद जिले की कांता देवी एक समय खेतों में मजदूरी करती थीं। अब वे जल सखी बनने के बाद गांव की जल आपूर्ति योजना की देखरेख कर रही हैं। उन्होंने पाइपलाइन लीकेज रोकने, पानी की गुणवत्ता जांचने और गांव की महिलाओं को जल संचयन के लिए प्रशिक्षित करने का बीड़ा उठाया है।
सामाजिक बदलाव की बयार
जल सखी महिलाओं के माध्यम से ग्रामीण समाज में लिंग समानता की दिशा में भी सकारात्मक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं। अब गांव की महिलाएं पंचायत बैठकों में खुलकर बोल रही हैं, निर्णय ले रही हैं और तकनीकी मुद्दों पर बातचीत कर रही हैं। इसके साथ ही उनके आत्मविश्वास और सामाजिक सम्मान में भी वृद्धि हुई है।
जल सखी कार्यक्रम ने महिला सशक्तिकरण को एक ठोस आधार दिया है, जहाँ महिलाएं केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि योजनाओं की भागीदार और नेतृत्वकर्ता हैं।
जल संरक्षण पर ठोस प्रभाव
जल सखी महिलाओं के काम का असर सीधे जल संकट से निपटने में देखा जा सकता है:
पानी की बर्बादी में कमी: पाइपलाइन मरम्मत और लीक की निगरानी से बड़ी मात्रा में पानी बचाया गया है।
जल स्रोतों का पुनर्भरण: तालाबों, कुंओं और नाडियों की सफाई व गहरीकरण का कार्य सामुदायिक सहभागिता से संभव हुआ।
वर्षा जल संचयन: गांवों में छत पर वर्षा जल संग्रहण को बढ़ावा देकर भूमिगत जल स्तर में सुधार किया गया।
जल सखी महिलाओं को काम के लिए पारिश्रमिक भी मिलता है, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। इससे उनके पास अब निर्णय लेने की क्षमता, बच्चों की शिक्षा पर खर्च और स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच बढ़ी है।
चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि जल सखी आंदोलन सफल हो रहा है, लेकिन इसे स्थायित्व और विस्तार देने के लिए कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं: कई बार महिलाएं जल प्रणाली की तकनीकी गड़बड़ियों को समझ नहीं पातीं। इसके लिए निरंतर प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
पुरुष वर्चस्व वाली पंचायतों में अवरोध: कई गांवों में अभी भी महिला नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया जा रहा है। आवश्यक संसाधनों की कमी: उपकरणों, जल परीक्षण किट और दस्तावेज़ीकरण की सुविधा सभी जगह समान रूप से उपलब्ध नहीं है।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है कि निरंतर क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए जाएं। स्थानीय प्रशासन से महिलाओं को नीति-निर्माण में भागीदारी मिले। मीडिया और सामाजिक मंचों पर प्रचार के माध्यम से जल सखी आंदोलन को लोकप्रियता दी जाए।
जल सखी जैसी योजनाओं को राज्य की जल नीति का स्थायी अंग बनाया जाए। इन महिलाओं को पंचायत स्तर पर प्रतिनिधित्व दिया जाए। जल सखी मॉडल को अन्य राज्यों में भी लागू करने के लिए नीति आयोग जैसी संस्थाएं मार्गदर्शन करें।
राजस्थान की जल सखी महिलाएं जल संकट से जूझते भारत के लिए एक नई राह दिखा रही हैं। यह केवल जल प्रबंधन की कहानी नहीं है, बल्कि सामाजिक बदलाव, महिला सशक्तिकरण और सामुदायिक नेतृत्व का उदाहरण है। जब महिलाएं जल की संरक्षक बनती हैं, तो केवल पानी नहीं, बल्कि पूरा जीवन संवरता है।
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किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।