धार्मिक पर्व और महिला श्रम: त्योहारों के पीछे छिपी हकीकत

धार्मिक पर्व सामाजिक मूल्यों को जीवित रखते हैं—भाईचारा, सेवा, करुणा, और शुद्धता।

त्योहारों में घरों की सफाई, पकवान, साज-सज्जा—सब कुछ महिलाओं के अदृश्य श्रम का परिणाम होता है।

पूजा के सारे काम महिलाएं करें, लेकिन मुख्य भूमिका हमेशा पुरुषों की—यह किस व्यवस्था का आदर्श है?

करवा चौथ, छठ, तीज—जहां त्याग और तपस्या स्त्रीधर्म के नाम पर थोपे जाते हैं।

स्त्रियाँ सामूहिक रूप से व्रत करती हैं, लेकिन धार्मिक नेतृत्व या सवाल पूछने की जगह नहीं।

त्योहारों में महिलाओं को 'पवित्रता' के घेरे में रखकर समाज उन्हें नियंत्रित करता है।

ईको-फ्रेंडली त्योहार, साझा रसोई, और सहकारी आयोजन अब महिलाओं के नेतृत्व में उभर रहे हैं।

महिलाओं के श्रम, भागीदारी और नेतृत्व को धार्मिक आयोजनों में स्थान मिलना चाहिए।

त्योहार जब सबके श्रम को पहचानें, तभी वे सच्चे अर्थों में सांस्कृतिक बनते हैं।