‘सुपर वुमन’ एक सामाजिक निर्माण है, हकीकत नहीं।

कामकाजी और घरेलू महिलाएं दोनों थक गई हैं।

पारिवारिक सहयोग की कमी महिलाओं की पहचान को निगल रही है।

‘घर की मुर्गी’ जैसी कहानियां सच्चाई को उजागर करती हैं।

परिवार को भी समायोजन और समझदारी का पाठ सीखना होगा।

बाजार और संस्कृति ने महिलाओं को ‘देवी’ बनाकर असलियत छिपाई है।

बदलाव की शुरुआत महिलाओं को खुद करनी होगी।

अब समय है सवाल पूछने का: "तुम इतनी परेशान क्यों हो?