SocietyWomen's History

आइए जाने क्या है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

(AP Photo/Altaf Qadri)

बहुत हद तक यह संभव है कि हम सब ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में सुना हो। पर यह क्यों मनाया जाता है, इसका जवाब बहुत स्पष्ट नहीं हो पाता है। पूरी दुनिया में 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिलाओं ने शिक्षा, नर्सिंग, चिकित्सा वाली पुरानी लीक से हटकर पिछले दो-तीन दशकों में पुलिस, राजनीति, वकालत, वायुसेना, खेल के मैदान, इंजिनियरिंग यानि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध कर दिया है। तेजी से बदलते परिदृश्य में महिलाएं दिन दो गुनी, रात चौगुनी प्रगति पथ पर अग्रसर हैं। महिलाओं की बदलती सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सास्कृतिक स्थिरता एवं स्वतंत्रता का प्रतीक है ये महिला दिवस को पूरे दुनिया में मनाया जाता है।

कैसे और कब शुरू हुआ महिला दिवस

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का विचार कैसे आया, इसका प्रथम बार आयोजन कहां हुआ और भारत में ये कब से मनाया जा रहा है। इन सवालों के पर्त में जाते है, तो इतिहास में महिलाओं के संघर्ष पर पड़े धूल साफ होने लगते हैं। औद्योगिक क्रांति के दौर में कमोबेश दौ सौ साल पूर्व पश्चिम के देशों में अधिक उत्पादन के लिए घरों और खेतों से निलककर महिलाओं को फैक्ट्रियों में जबरन काम पर लगा दिया जाता था। शिक्षा और अन्य साधनों के अभाव में महिलाएं चुपचाप अत्याचार और शोषण सहने के लिए विवश थी। फैक्ट्री में विपरीत और विषम परिस्थितियों में महिलाओं से पशुओं के तरह 16-17 घंटे काम लिया जाता था। आत्याचार और प्रताड़ना तो बोनस के रूप में मिलता था। इस कमरतोड़ मेहनत के बाद भी महिला कर्मचारियों को पुरुषों के मुकाबले बहुत कोशिशों से आधा वेतन मिलता था।

रंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव उन दिनों जोड़ों पर था। अश्वेत महिलाओं को अपना खून-पसीना काम में झोंक देने के बाद भी श्वेत महिला कर्मचारियों से आधा वेतन मिलता था। श्वेत-अश्वेत महिलाओं का शोषण, अत्याचार, प्रताड़ना व भेदभाव संगठित हुआ और महिला दिवस के जन्म का कारण बना। श्वेत-अश्वेत महिलाओं ने अधिक समय तक यह जुल्म न सहने का फैसला कर सार्वजनिक जूल्म के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करने लगीं। इसके फलस्वरूप 1845 में पहली बार अमेरिका के पश्चिम पेनमिलवेनिया में महिला व पुरुष कर्मचारियों ने संयुक्त रूप से काम के घंटे कम निश्चित करने की मांग उठाई, जिससे कोई लाभ नहीं हुआ। परंतु, मुक्ति संघर्ष की नींव पक्की हो गई।

कमोबेश 65 वर्षों के लंबे अर्से के बाद 8 मार्च 1908 को न्यूयार्क(अमेरिका) में हजारों की संख्या में कपड़ा मिल की महिला कर्मचारियों ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। कार्य के घंटे को 10 घंटे किया जाए, कार्य स्थल पर सुरक्षा की व्यवस्था हो, व्यस्क औरतों को मत प्रयोग का अधिकार हो, जमीन–जायदाद का अधिकार और शिक्षा प्राप्त करने की मांग जोरदार तरीके से उठाई गई। इस संघर्ष के दो वर्ष के बाद 8 मार्च 1910 को महिलाओं के स्थिति में काफी परिवर्तन आ चुका था। तब क्लारा जैटकिंन ने कोपेनहैगन, डेनमार्क में प्रथम बार अंतरार्राष्ट्रीय महिला दिवस का प्रस्ताव रखा गया। तभी से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है।

भारत में महिला दिवस

Indian women movement

भारत में महिला दिवस सबसे पहले 8 मार्च 1943 में मनाया गया। तब से आज तक हर वर्ष महिला दिवस देश के महिलाओं के लिए मांग दिवस के अवधारणा के रूप में मनाया जाता है। आजादी के बाद लगातार महिलाओं के लिए बदलते परिवेश में नई चुनौतियों और महिलाओं के समस्याओं को प्रबल ढंग से प्रकाश में लाकर समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है। महिला दिवस भारत में महिलाओं के अपार शक्ति, संयम, मनोबल, धीरता व जूझारू प्रवृत्ति का स्मरण कराता है। मौजूदा स्थिति में भारतीय महिलाएं परंपरा और आधुनिक मूल्यबोध के साथ अपने जीवन शैली के चुनौतियों, घर और बाहर दोनों ही जगहों पर अपने लिए स्वस्थ माहौल, घर और बाहर दोनों ही जगहों पर अपनी सुरक्षा, अपने स्वयं के लिए समय, अपनी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों और सूचना-तकनीक के दौर में डिजिटल हो रही दुनिया में अपने लिए जेंडर पूर्वाग्रह से मुक्त स्पेस की तलाश में है, जहां हर महिला के अस्मिता, स्वतंत्रता और समानता को सही सम्मान मिल सके।

इस वर्ष भारत में महिला दिवस और होली एक ही तारीख 8 मार्च को है। इसलिए हो सकता कि महिला दिवस के लिए मनाया जाने वाला उत्सव होली के रंगों में गुम हो जाए। परंतु, दुनिया भर में इस साल महिला दिवस डिजिटऑल: लैंगिक समानता के लिए आविष्कार एवं तकनीक के थीम के रूप में मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य तकनीक और ऑनलाइन शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों और महिलाओं द्वारा दिए जा रहे योगदान को स्वीकार्य करना और उसका जश्न मनाना रहेगा। साथ ही साथ महिलाओं और लड़कियों के असमानता पर डिजिटल दुनिया कैसे लैंगिक भेदभाव करती है, इसकी पड़ताल की जाएगी।

दुनिया भर में इस साल महिला दिवस डिजिटऑल: लैंगिक समानता के लिए आविष्कार एवं तकनीक के थीम के रूप में मनाया जा रहा है।महिलाओं और लड़कियों के असमानता पर डिजिटल दुनिया कैसे लैंगिक भेदभाव करती है, इसकी पड़ताल की जाएगी।

हर साल 8 मार्च अंतराष्ट्रीय महिला दिवस केवल एक दिवस भर नहीं है। यह पूरी दुनिया को महिलाओं के समानता और स्वतंत्रता के पक्ष में लाने की एक कोशिश है। मसलन, बीते दशकों में खेल के दुनिया में महिला एथलिटों को समान भुगतान के लिए संघर्षशील रहा। खेल के दुनिया में पहचान किए गए भेदभाव को कम करने की कोशिशों में सक्रिय रहा। लंबे समय से पूरी दुनिया में पीरियड लीव, पिता बनने पर पिता को भी अवकाश और गर्भपात की सुविधाएं बढ़ाने के लिए कानून बनाने पर संघर्षरत रहा है।

बेशक अंतराष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं के हिजाब के इस्तेमाल या अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकार और कई देशों में महिलाओं के सवालों पर अपना महत्वपूर्ण हस्तक्षेप नहीं कर पा रहा है। परंतु, यह महिलाओं के लिए एक लोकतांत्रिक स्पेस के निमार्ण के लिए संकल्पबद्ध है, और निरतंर प्रयासरत भी है।

Pratyush Prashant

किसी भी व्यक्ति का परिचय शब्दों में ढले, समय के साथ संघर्षों से तपे-तपाये विचार ही दे देते है, जो उसके लिखने से ही अभिव्यक्त हो जाते है। सम्मान से जियो और लोगों को सम्मान के साथ जीने दो, स्वतंत्रता, समानता और बधुत्व, मानवता का सबसे बड़ा और जहीन धर्म है, मुझे पूरी उम्मीद है कि मैं अपने वर्तमान और भविष्य में भी इन चंद उसूलों के जीवन जी सकूंगा और मानवता के इस धर्म से कभी मुंह नहीं मोड़ पाऊगा।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Translate »
हज़रत महल: गुलामी से राजमहल तक का सफर आधुनिक तकनीक ने महिलाओं को समस्याओं को आज़ाद किया… न्याय की नई राह: महिलाओं के हक़ में ऐतिहासिक फैसले “गर्मी में सेहत का साथी – पिएं सत्तू, रहें फिट और कूल!” एंडोमेट्रियोसिस – एक अनदेखी बीमारी